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श्रमण सूक्त
_ श्रमण सूक्त
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अजय भासमाणो उ
पाणभूयाइ हिंसई। वधई पावय कम्म त से होई कडुय फल।।
(दस ४ ६)
अयतनापूर्वक बोलने वाला श्रमण बस और स्थावर जीवो की हिंसा करता है। उससे पाप-कर्म का बंध होता है। वह उसके लिए कटु फल वाला होता है।
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