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श्रमण सूक्त
___ श्रमण सूक्त
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॥ १२
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अजय सयमाणो उ
पाणभूयाइ हिसई। बधई पावय कम्म त से होई कडुय फल।।
(दस ४ ४)
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अयतनापूर्वक सोने वाला श्रमण त्रस और स्थावर जीवो की हिसा करता है। उससे पाप-कर्म का बध होता है। वह उसके लिए कटु फल वाला होता है।
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