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श्रमण सूक्त
अमण सुरु
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११६)
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अयारपन्नत्तिधर
दिडिवायमहिज्जग। वइविक्खलिय नच्चा न त उवहसे मुणी।।
(दस ८ ४६)
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आचारांग और प्रज्ञप्ति-भगवती को धारण करने वाला तथा दृष्टिवाद को पढने वाला मुनि बोलने मे स्खलित हुआ है (उसने वचन, लिड्ग और वर्ण का विपर्यास किया है) यह जान कर मुनि उसका उपहास न करे।
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