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श्रमण सूक्त
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न य भोयणम्मि गिद्धो चरे उछं अयंपिरो ।
अफासुयं न भुंजेज्जा कीयमुद्देसियाहडं । ।
( दस. ८ : २३)
मुनि भोजन में गृद्ध होकर विशिष्ट घरो में न जाए, किन्तु वाचालता से रहित होकर उञ्छ (अनेक घरों से थोडाथोडा) ले । अप्रासुक. क्रीत, औद्देशिक और आहृत आहार प्रमादवश आ जाने पर भी न खाए।
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