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श्रमण
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महुकारसमा बुद्धा
जे भवति अणिस्सिया। नाणापिडरया दंता तेण वुच्चति साहुणो।।
(दस. १:५०
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जो बुद्ध पुरुष मधुकर के समान अनिभित हैं-किसी एक पर आश्रित नहीं नाना पिंड में रत हैं और जो दान्त हैं वे अपने इन्हीं गुणों से साधु कहलाते हैं।
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