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अम
श्रमण सूक्त
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। १०१
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पुढवि भित्तिं सिल लेलु
नेव भिदे न सलिहे। तिविहेण करणजोएण सजए सुसमाहिए।।
(दस ८ ४)
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सुसमाहित सयमी तीन करण और तीन योग से पृथ्वी, भित्ति (दरार), शिला और ढेले का भेदन न करे और न उन्हे
कुरेदे।
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Mayawat
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