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वचन-साहित्य-परिचय कहते हैं !" तन्त्रोंको कहीं-कहीं 'श्रुति' भी कहा गया है। मनुस्मृतिके प्रसिद्धः भाप्यकार थी उलूक भट्टने अपने भाप्यमें आगमांतर्गत तन्त्र भागके विषयमें लिया है, "वैदिक और तांत्रिक नामकी दो श्रुतियां हैं।" वैसे ही प्रसिद्ध वैष्णव ग्रन्थ भागवतमें कहा है कि "कलियुगमें तंत्रोक्त पद्धतिसे केशवकी पूजा करनी चाहिए।" देवी भागवतमें तन्त्र-शास्त्रको 'वेदांग' कहा है ।. शाक्त यागमोंमें एक कुलार्णव तन्त्र है । उसमें कहा है, "शाक्त तंत्र वेदात्मक है ।" २ इसी प्रकार प्रसिद्ध दोव सैद्धांतिक श्री नीलकंठने, जो चौदहवीं सदीमें हुए हैं, स्पष्ट कहा है, "वेद और शिवागम एक है, इसमें भेद नहीं करना चाहिए।" उन्होंने ब्रह्म-सूत्रों पर भी भाप्य लिखा है । उसी प्रकार मतंग परमेश्वरागममें कहा गया है "आगम' शिवके ही वचन हैं, स्वयं प्रमाण हैं। यह सब प्रमाण कहते हैं कि शैवागम' अवैदिक नहीं है । अर्थात् शैवागमसे प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष प्रेरणा पाकर लिखे गये वचन अवैदिक नहीं हैं । तया वचनकारोंकी साधना-प्रणाली भी अवैदिक नहीं है। ___ आगम अथवा तंत्रोंका सामान्य रूप एक है। वह वेद और उपनिपदोंकों अपना आधार मानते हैं । आगमोंका अन्तिम साध्य भी वेद तथा उपनिपदोंकी तरह मुक्ति ही है । जन्म-मरण रहित मुक्ति ही इन सबका अन्तिम साध्य है। किंतु आगम साध्यसे अधिक साधनाका विचार करते हैं। वह मुक्तिको ही साध्य मानकर "वह कैसे प्राप्त करनी चाहिये", इसी पर अपना लक्ष्य केंद्रित करते हैं । इसी विषयमें कहते हैं । इसीका "विवेचन" विश्लेषण करते हैं । अागमोंमें इष्ट देवता तथा उपासना आदि साधना-विपयक भिन्नताके कारण कई भेद हुए हैं । जैसे, 'शाक्त', 'वैष्णव' तथा 'शव' ऐसे तीन भेद मुख्य हैं । वैसे 'सोर
और 'गाणपत्य' नामके आगमोंके नामभी सुनाई देते हैं। किंतु अब तक वह सम्पूर्णतया उपलब्ध नहीं हैं। इस कारण अथवा अन्य कई कारणोंसे इन यागमोंके विषयमें विशेप जानकारी नहीं मिलती। साथ-साथ इन अागमोंकाः हमारी इस पुस्तकसे कोई प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष सम्बन्ध भी नहीं है ।
आगम ग्रन्योंमें अपने अन्तिम साध्यके विषयमें अधिक चर्चा नहीं है । उनमें अधिकतर नावनाके विपयमें ही अत्यन्त विस्तार और सूक्ष्मताके साथ बिचार किया गया है । इसलिए आगमोंको 'साधना-शास्त्र' भी कहा जाता है । माधना-गास्त्रके इन वागमोंको 'शिवागम', शाक्त पागमोंको 'शाक्त-तंत्र' तथा १. "वैदिकी तांत्रिकी व द्विविधा अनि कोनिता।" २. सम्मान वेदात्मक शालय, विद्धि कौलात्मक प्रिये । 3. "वरन वेदशिकामयोः मैदं न पश्यामः।" । ४. “माकम् तस्यायन तथ्यमीश्वरमापितम् ।"