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वचन-साहित्यका साहित्यिक परिचय
सामान्य लोगोंकी समझमें आने-वाले नहीं हैं। यकायक उसका अर्थ समझमें पाना कठिन है। किंतु एक बार ऐसे शब्दोंका अर्थ समझ लिया जाय, तो कन्नड़-भाषा-भाषी जन-सामान्यके लिए वचन-साहित्यकी भाषा कठिन नहीं है। हाँ, वर्तमान युगमें, जब कन्नड़ भाषाने आधुनिक रूपमें अपना विकास किया है उसके कुछ शब्दों को, जो प्राचीन कन्नड़के हैं, समझना कठिन है । *किंतु वह शब्द पुनः प्रचार में लाने योग्य हैं। उन' शब्दोंसे नयी कन्नड़ अधिक लालित्यपूर्ण, अर्थ और भावपूर्ण, तथा शुद्ध होगी। वचनोंकी वाक्य-रचना भी सरल, सुंदर, सरस, मधुर, काव्यात्मक और सूत्रात्मक है। उनमें आनेवाले "क्रिया-पदरहित, अर्थपूर्ण सुवोध वाक्य भाषाका सौंदर्य और माधुर्य बढ़ाते हैं, भाषाको अधिक लालित्यपूर्ण बनाते हैं। भाषामें नया प्रवाह, धार, और स्वारस्य लानेवाले हैं। अर्थात् वचनकारोंने केवल विचारों में ही नहीं, अपनी - साहित्य-शैली, शब्द चयन आदिमें भी युग-परिवर्तन और नया युगनिर्माण किया है।
वचनोंके वाह्य परिचयके उपरांत उसके अंतरंगका विचार करना रह जाता है। उसके अंतरंगका विचार करते समय यह देखना होगा कि कितने 'प्रकारके वचन हैं । वचनोंका विभाजन करते समय, उनके भाव, विचार, तत्त्व
आदिकी दृष्टि से विचार करना होगा। उसमें प्रानेवाले अलंकार, प्रास, पदलालित्य आदिकी दृष्टि से विचार करना होगा। किंतु यहां और एक दृष्टिसे वचनोंका विश्लेषण किया है । वह है (१) सूत्रात्मक वचन (२) वर्णनात्मक वचन, (३) उपदेशात्मक वचन, (४) प्रार्थनात्मक वचन, (५) सती-पति - भावात्मक वचन, (६) विरक्तात्मक वचन, (७) गूढात्मक वचन, तथा (८) प्रात्मगत वचन ।
(१) सर्व सुलभ, सुन्दर, सरल शब्दों द्वारा विषयकी गहराईको स्पष्ट रूपसे व्यक्त करनेवाले वचन ही सूत्रात्मक हैं । वचन-साहित्यमें ऐसे अनेक वचन हैं। इतना ही नहीं, इसमें आनेवाले वाक्य ही ऐसे हैं । जैसे 'पाये' दासत्व'२ "निराशये ईशत्व"3 "दासत्व ईशत्वद ई अनुव विचारिसि निराशयाँ लगिरु वेद
- १. हिंदी में केवल 'ए' और 'ऐ' तथा 'ओ' और 'औ' ऐसे ही हैं, किंतु कन्नड़ में हस्व 'ए'.
दीर्घ 'ए' और प्लुत 'ऐ' तथा 'माँ', 'ओ', 'औ' ऐसे तीन अक्षर हैं । हरव 'ए' के लिए 'प्र'
पर" तथा हस्व 'ओ' के लिए आ पर दिया गया है। २. आशा ही दासत्व। ३. निराशा-निरपेक्षा ही ईशत्व । ४. दासत्व और ईशत्वकी स्थिति समझकर ईशत्वको स्थितिको जानकर निरपृहता में स्थिर होना हीश-पद है।