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मां
बनाकर वही रहने लगे। श्रीभगवान् स्कन्द आश्रम मे रहते थे परन्तु वह प्राय प्रतिदिन नीचे पहाडी की ओर स्मारक पर आया करते थे। आश्रम से स्मारक तक पहुंचने मे आध घण्टा लगता था। लगभग ६ महीने बाद, एक दिन जब वह सैर के लिए वाहर गये, तव सैर करते समय उनके मन मे नीचे स्मारक पर जाने और वहां रहने की प्रबल प्रेरणा हुई । जब वह वापस लौट कर नही आये भक्तजन वहाँ उनके पीछे-पीछे चले गये और इस प्रकार श्री रमणाश्रम की स्थापना हुई। उन्होने बाद मे कहा, “मैं अपनी इच्छा से स्कन्दाश्रम से नही आया। कोई शक्ति मुझे जवदस्ती यहाँ खीच लायी और मैंने उसका पालन किया। यह मेरा निणय नही था बल्कि दैवीय-इच्छा थी।"