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अरुणाचल
आसू भरे हुए पत्र पढा, उसे सात्वना प्रदान की परन्तु वह शोकातुर महिला पुत्री के दाह-सस्कार के लिए चल पडी। वह पौत्र रमण के साथ वापस लौटी और उसने उसे श्रीरमण की गोद रख दिया। जैसे ही उन्होंने बच्चे को लिया उनकी आंखो मे आँसू उमड आये और उनकी करुणा ने उस महिला को शान्ति प्रदान की। __ अचम्माल यौगिक अभ्यास किया करती थी जिसकी दीक्षा उसने एक उत्तर भारतीय गुरु से ली थी। वह अपनी दृष्टि नासिका के अग्रभाग पर जमा लेती
और समाधिस्थ होकर अलौकिक प्रकाश के स्रोत प्रभु के चिन्तन मे लीन हो जाती, कई बार तो घण्टो तक अविचल भाव से बैठी रहती, उसे अपने शरीर की भी सुध-चुध न रहती। श्रीभगवान् को इस सम्बन्ध मे वताया गया परन्तु वह मौन रहे । अन्त मे उसने स्वय उन्हे वताया और उन्होने उसे इम क्रिया के लिए हतोत्साहित किया । "तुम्हें अपने वाहर जो प्रकाश दिखायी देता है, वह तुम्हारा वास्तविक लक्ष्य नहीं है । तुम्हारा ध्येय आत्म-साक्षात्कार का होना चाहिए, इससे कम जरा भी नही ।" इसके बाद उसने यह अभ्यास बन्द कर दिया और वह एकमात्र श्रीभगवान् पर निर्भर रहने लगी।
एक बार एक उत्तर भारतीय शास्त्री विरूपाक्ष कन्दरा पर श्रीभगवान् के साथ वार्तालाप कर रहे थे कि वहाँ अचम्माल भोजन लेकर पहुंची। वह अत्यन्त उद्वेलित थी और कांप रही थी। जब उससे इसका कारण पूछा गया तो उसने कहा, कि जब वह सद्गुरुस्वामी की कन्दरा के पास से गुजर रही थी, उसे ऐसा लगा कि श्रीभगवान् तथा एक अन्य अजनवी व्यक्ति माग मे खडे हैं। वह अपने रास्ते पर चलती गयी परन्तु उसे एक आवाज सुनायी दी, "दूर क्यो जाती हो, जव में यहाँ हूँ।" वह देखने के लिए वापस मुडी परन्तु वहां कोई नहीं था। वह भय से जल्दी-जल्दी भागकर आश्रम पहुँच गयी। ___ शास्त्री एकाएक चिल्ला उठे, "स्वामिन् | आप यहाँ मुझसे बातें कर रहे हैं, और इस महिला के आगे भी मार्ग में प्रकट हो रहे हैं, मुझ पर तो आप इस प्रकार की कृपादृष्टि नहीं करते ।" और श्रीभगवान् ने कहा कि तथ्य यह है कि अचम्माल को मैं इसलिए दिखायी दिया क्योकि इसका ध्यान निरन्तर मेरी ओर रहता है। ___ अचम्माल ही अकेली ऐसी महिला नही थी जिसे श्रीभगवान् दिखायी दिया करते थे। मुझे ऐसा अन्य कोई उदाहरण ज्ञात नही है जव स्वामीजी के इस प्रकार दिखायी देने से किसी के मन में भय पैदा हुआ हो । कुछ वष वाद एक पाश्चात्य वृद्ध दशक पहाडी के नीचे स्थित आश्रम मे पधारे थे । दोपहर के भोजन के बाद वह पहाडी मे घूमने निकल पसे परन्तु अपना रास्ता भूल गये । यह धूप और श्रम के कारण बहुत थक चुके थे, उन्हे यह नहीं सूझ