________________
पांचवां अध्याय वापसी का प्रश्न
जव तरुण वेंकटरमण ने घर छोडा, तब सारा परिवार अत्यन्त आश्चर्य मे पड गया। उसके बदले हुए रग-ढग और परिवार की भवितव्यता के वावजूद किसी ने इस सम्बन्ध मे कल्पना तक न की थी। तलाश और पूछ-ताछ निष्फल सिद्ध हुई। उसकी मां, जो उस समय मानमदुरा मे अपने सम्बन्धियो के यहाँ ठहरी हुई थी, सबसे अधिक दुखी हुई । उसने अपने देवरो सुब्बियर और नेल्लियाप्पियर से वेंकटरमण की तलाश मे वाहर जाने की प्राथना की। ऐसी अफवाह सुनी गयी कि वेंकटरमण एक नाटक कम्पनी मे शामिल हो गया है जो त्रिवेन्द्रम मे परम्परागत धार्मिक नाटक दिखा रही है । नेल्लियाप्पियर तुरन्त वहां गये और उन्होने कई नाटक कम्पनियो से पूछ-ताछ की, परन्तु परिणाम कोई न निकला । परन्तु अलगम्माल कहाँ हार मानने वाली थी। उसने दूसरी वार उससे जाने का आग्रह किया और कहा कि वह उसे भी अपने साथ ले चले। त्रिवेन्द्रम में उसने वेंकटरमण की आयु और कद के तथा उसके जैसे वालो वाले एक युवक को देखा, जिसने उसे देखते ही मुंह मोड लिया और दूर चला गया । उसे पूरा विश्वास हो गया कि यह उसका वेंकटरमण ही था और वह उससे दूर भाग रहा था । वह अत्यन्त निराश होकर घर वापस लौट आयी ।
वेंकटरमण के चाचा सुब्बियर का, जिनके पास वह मदुरा मे ठहरा था, अगस्त १८६८ मे देहान्त हो गया । नेल्लियाप्पियर और उनका परिवार मृत्युसस्कार में सम्मिलित होने गये और वहां उन्हें पहली बार वेकटरमण के गुम होने का समाचार मिला । मृत्यु-सस्कार मे सम्मिलित होने वाले एक युवक ने उन्हे बताया कि जब वह हाल ही मे मदुरा के एक मठ मे गया, तो वहां उसने अन्नामलाई ताम्बीराम नामक एक व्यक्ति को भक्तिभावपूवक तिरुवन्नामलाई के एक तरुणस्वामी की चर्चा करते हुए सुना था। यह जानने के पश्चात् कि स्वामी तिरुचजही के रहने वाले हैं, उसने उनके सम्बन्ध मे विस्तार से पूछा था। उसे यह ज्ञात हुआ कि उनका नाम वेंकटरमण है। उसने निष्कर्ष रूप मे कहा, "यह जरूर आपका वेंकटरमण होगा और अब वह एक सम्मानित स्वामी है।"