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________________ तपस्या में भोज्य-पदार्थ दे जाते थे परन्तु स्वामी प्रतिदिन दोपहर को भोजन का फेवल एक प्याला स्वीकार करते थे, पोष भोज्य पदाथ भक्तो मे प्रसाद के रूप में बाँट दिये जाते थे। अगर उन्हें किसी काम के लिए शहर जाना होता थाप्राय किसी मित्र से कोई आध्यात्मिक या भक्ति सम्बन्धी पुस्तक लेने के लिए-तो वह मन्दिर को ताला लगा जाते और वापस आकर देखते कि वह स्वामी को जिस स्थिति मे छोड गये थे, उसी स्थिति मे वह वैठे है। स्वामी अपने शरीर के प्रति विलकुल उदासीन थे। उन्होने इसकी पूर्णत उपेक्षा कर दी थी। वह स्नान नहीं करते थे, उनके बाल बढ गये थे और उन्होने जटामो का रूप धारण कर लिया था, उनके हाथो के नाखून बहुत लम्बै हो गये थे और वे मुड गये थे। कुछ ने इसे बडी आयु का चिह्न समझा और वे आपस मे कानाफूसी करने लगे कि उन्होने यौगिक सिद्धियो के माध्यम से अपने शरीर के यौवन को बनाये रखा है। वास्तव में उनका शरीर बहुत कृश हो गया था। जब उन्हें बाहर जाने की जरूरत होती, तो वह वही मुश्किल से खडे हो पाते भे। वह उठने की कोशिश करते, परन्तु फिर गिर पसते, दुवलता के कारण उन्हें चक्कर आने लगते, अपने पैरो पर खड़ा होने के लिए उन्हें कई बार कोशिश करनी पड़ती। एक वार वह दरवाजे तक पहुंच गये और दोनो हाथों से उसे पकडे हुए थे कि उन्होंने देखा पलानीस्वामी नन्हे सहारा दिये हुए हैं। कभी किसी की सहायता लेना वह पसन्द नही करते थे, उन्होंने कहा, "आप मुझे क्यो पकडे हुए हैं ?" और पलानीस्वामी ने उत्तर दिया, "स्वामी गिरने ही वाले थे और मैंने गिरने से रोकने के लिए आपको सहारा दिया है।" जिस व्यक्ति ने दिव्य-सत्ता के साथ एकता प्राप्त कर ली है, कई वार उसकी देव-प्रतिमा की तरह कर्पूर-प्रज्वलन, चन्दन-लेप, पुष्पोपहार, तमण और वेद-मन्त्रोच्चारण के साथ पूजा की जाती है। जब ताम्वीराम गुरुमूतम् में थे तब उन्होंने इस तरीके से स्वामी की पूजा करने का निणय किया। पहले दिन स्वामी सहसा उनके चक्कर मे आ गये और उन्हे अपने उद्देश्य मे सफलता मिल गयो, परन्तु अगले दिन जब ताम्बीराम अपना दैनिक भोजन का प्याला लिये हुए आये, उन्होंने स्वामी की दीवार के ऊपर तमिल में कोयले से लिखे हुए ये शब्द देखे, 'इसके लिए यही सेवा पर्याप्त है जिसका अभिप्राय यह था कि इस शरीर के लिए जो भोजन दिया जाता है, यही केवल पर्याप्त है। भक्तो को यह जानकर आश्चर्य हा कि स्वामी को लौकिक शिक्षा भी मिली थी और वह पढ तथा लिख सकते थे। अब स्वामी के दशनो के लिए आने याले एक व्यक्ति ने उनके जन्म स्थान और नाम के सम्बन्ध में पता लगाने का निश्चय किया । वे एक बुजुर्ग व्यक्ति थे, वेंकटराम ऐय्यर उनका नाम था और शहर के तालुक कार्यालय मे वह मुख्य लेखपाल थे। वह प्रात काल प्रतिदिन
SR No.034101
Book TitleRaman Maharshi Evam Aatm Gyan Ka Marg
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAathar Aasyon
PublisherShivlal Agarwal and Company
Publication Year1967
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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