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रमण महपि
एक रिपोर्टर अशान्त भाव से इधर-उधर चल रहा था, और अत्यन्त प्रयास करने के बावजूद वह अपने को अत्यन्त बेचैन अनुभव कर रहा था । उसने यह निश्चय किया कि जब तक वह तिरुवन्नामलाई से परे, सामान्य परिस्थितियो मे नही पहुँच जायेगा, वह अपनी कहानी नही लिखेगा | उसके साथ एक फासीसी प्रेस फोटोग्राफर था । अप्रत्याशित रूप से, सभा भवन के वाहर, वरामदे पर वैठे हुए भक्तो के एक दल ने 'अरुणाचल शिव' गाना शुरू किया । इसे सुनते ही श्रीभगवान् की आँखे खुली और उनमे चमक आयी । अवर्णनीय माधुर्य मिश्रित हास्य उनके मुखमण्डल पर फैल गया । उनके नेत्रो मे आनन्दाधु वहने लगे । उन्होंने एक गहरा श्वास लिया, उसके बाद फिर श्वास नही आया । कोई सघर्ष नही था, कोई अग-मकोच नही था, मृत्यु का अन्य कोई संकेत नही था । केवल अगला श्वास नही आया ।
कुछ क्षणो तक लोग स्तब्ध खडे देखते रहे । मजन जारी रहे । फ्रामीमी प्रेस फोटोग्राफर मेरे पास आया और उसने मुझ से श्रीभगवान् की मृत्यु का विलकुल ठीक-ठीक समय बताने के लिए कहा। इसे सम्पादकीय निर्दयता समझते हुए मैंने अशिष्टता से उत्तर दिया कि मैं नही जानता । फिर एकाएक मुझे श्रीभगवान की अक्षय शिष्टता का स्मरण हो आया और मैंने उससे कहा कि उस समय ८-४७ वजे थे । प्रेस फोटोग्राफर ने अत्यन्त आवेश के साथ कहा "मैं बाहर सड़क पर चल रहा था और उसी समय एक वडा ताग वीरे-धीरे आसमान से टूटता हुआ मुझे दिखायी दिया था। सुदूर मद्राम तक, वहुत मे लोगो ने इस तारे को देखा था और उनके मन में यह भाव उठा था कि यह किसी अनिष्ट का सूचक है । यह तारा अरुणाचल के शिखर की ओर उत्तर-पूर्व मे चला गया या । "
इस प्रथम स्तब्धता के उपरान्त शोक-समुद्र फूट पटा । भगवान् के शरीर को बैठी हुई मुद्रा मे बरामदे मे लाया गया । भगवान् के दशनो के लिए महिलाएँ और पुरुष वरामदे के कटहरे के पास आ गये । एक महिना मूच्छित हो गयी । दूसरे लोग सिसकियाँ भर रहे थे ।
मालाओं से आवृत शरीर को सभा भवन मे एक तख्त पर रख दिया गया और भक्तजन इसके चारों जोर बैठ गये । लोगा को आशा थी कि भगवान का चेहरा समाधि मे प्रस्तर सदृश होगा, परन्तु इस पर वेदना की रेखाएँ अकित थी और इसे देख कर हृदय महसा द्रवित हो उठना था। गन को धीरे-धीरे इस पर रहम्यात्मकता का आवरण चढता गया ।
रात भर भक्तजन विशाल सभा मण्डप मे बैठे रहे और नगर निवासीजन भय तथा सम्मान - मिश्रित मौन मे वहाँ से गुजरते रहे । 'अरुणाचल शिव' वा