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रमण महर्षि से देखने वाले दशक को ऐसा लगता था कि बहुत थोडा काय हो रहा है परन्तु वस्तुत वहाँ महान् काय सम्पन्न हो रहा था। ___आयु के वढने के माथ-साय श्रीभगवान् के दैनिक जीवन मे परिवतन आ गया । ज्यो-ज्या भगवान् का शरीर दुवल होता जाता था त्यो-त्यो दैनिक चर्या और प्रतिवन्ध कठोर होते जात ये। जब थीभगवान् अत्यन्त दुवल हो गये, उनसे मिलने के लिए कोई निर्धारित समय नहीं था। दिन हो चाहे रात, हर समय उनसे मिला जा सकता या । सोते समय भी वह भवन के दरवाजे बन्द नही करवाते थे ताकि कोई दशनार्थी उनसे मिलने से वचित न रह जाये । प्राय वह रात को बहुत देर तक भक्तो से वाते करते रहते थे । इन भक्तो मे मे कई, मु दरेश ऐय्यर की तरह गृहस्थी थे, जिन्हे अगले दिन काम पर जाना होता या । इन भक्तो का ऐमा अनुभव था कि आश्रम मे श्रीभगवान् के साथ एक गत रहने के उपरान्त, निद्रा के अभाव मे उन्हे अगले दिन किसी प्रकार की कोई थकावट अनुभव नहीं होती थी। ___ आश्रम का दैनिक जीवन सुव्यवस्थित और नियमित था । व्यवस्था और नियमितता श्रीभगवान् के जीवन के आदश थे, जिन्हे उन्होने अपने जीवन म ढाला या और जिनके पालन के लिए वह दूसरा से कहा करते थे। इस प्रकार आश्रम की प्रत्येक वस्तु स्वच्छ और अपने उचित स्थान पर थी। आश्रम के भवनो की सफेदी की हुई वाहर की दीवारे सूय के प्रकाश मे चमकती थी, फश इतने स्वच्छ थे कि श्वेत वस्त्रधारी भक्तजन अपने कपडो के मैले होने की चिन्ता किये विना निस्सकोच वहां बैठ सकते थे। भगवान् की शय्या पर विछी हुई कशीदाकारी की हुई चादरें प्रति दिन बदली जाती थी और हमेशा साफ सुथरी रहती थी और उन्ह ठीक ढग से तह किया जाता था।
सन् १९२६ मे ही भगवान ने पहाडी की प्रदक्षिणा करना छोड दिया था। आश्रम मे आने वाले लोगो की सख्या प्रति दिन बढ रही थी। उस पर नियत्रण करना सम्भव नही था। जव श्रीभगवान् बाहर जाते तो कोई भी व्यक्ति आश्रम मे रहना पसन्द नहीं करता था। हर कोई उनके साथ जाना चाहता या। इसके अतिरिक्त, यह भी आशका थी कि श्रीभगवान् के जाश्रम मे उपस्थित न होने की स्थिति मे, भक्तगण दशनो के लिए आयें और उन्ह वहाँ न पाकर निराश होकर वापम न चले जायं । अनेक अवमगे पर उन्होने हम ओर मकेत किया था कि जो भी व्यक्ति उनके दशनो के लिए आये उसे गवा न जाये । श्रीभगवान् कहा करते थे कि वह इसीलिए पहाडी की तलहटी म रहते हैं और स्वन्दाश्रम नही जाते क्योंकि वहाँ भक्तजन मरलता में नहीं पहुँच सकते । श्रीभगवान् ने न केवल पहाडी का चक्कर लगाना छोड दिया वल्कि चाहे जो भी कारण हो, वह सिवाय प्रात और माय भ्रमण के आश्रम