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रमण महाप
आग धवल जलद के रूप' म महर्षि और दक्षिणामूर्ति का जाकार प्रकट हुआ। धीरे-धीरे इन आकृतियो की रूपरेग्वा प्रकट हुई। फिर विद्युत् की सी रेखाओ मे आंग्वे, नाक तथा अन्य अगो का निर्माण हुना। धीरे-धीरे इनका विस्तार होता गया और सत तथा दक्षिणामूर्ति की गमस्त आकृति प्रचण्ड और असह्य प्रकाश से चमकने लगी । परिणामत मैन अपनी आँखें बन्द कर ली। मैंने कुछ क्षण प्रतीक्षा की और फिर उन्हें तथा दक्षिणामूर्ति को अपने स्वाभाविक स्प मे देखा । मैंने उन्ह दण्डवत् प्रणाम किया और वापस आ गया। इस अनुभव का मुझ पर इतना प्रवल प्रभाव पड़ा कि इसके बाद एक महीने तक मेरा श्रीभगवान् के निकट जाने का साहस नही हुआ। एक महीने बाद में गया और मैंने उन्हें स्कन्दाश्रम के सम्मुख खडे हुए देखा। मैने उनसे कहा, 'मैंने एक महीना पहले आपके सम्मुख एक प्रश्न रखा था और मुझे उपयुक्त अनुभव हुआ ।' मैंने उनसे इस अनुभव की चर्चा की। मैंने उनसे इसकी व्याख्या करने के लिए कहा । तब कुछ देर रुकने के बाद उन्होंने कहा, 'आप मेरे रूप के दर्शन करना चाहते थे, आपने मेरा लुप्त होना देवा, मैं निराकार हूँ। इसलिए वह अनुभव वास्तविक मत्य है । आगामी दर्शन भगवत् गीता के अध्ययन के जाधार पर निर्मित आपके अपने विचारो के अनुरूप है। परन्तु गणपति शास्त्री को भी ऐसा ही अनुभव हुआ था, आप उनसे परामर्श कर सकते हैं।' मैंने वस्तुत शास्त्रीजी से परामश नही किया। इसके बाद महर्षि ने कहा, 'इस बात का पता लगा कि यह द्रष्टा या विचारक “मैं” कौन है और उसका निवास कहां है।"
एक अज्ञात भक्त विरूपाक्ष मे एक दर्शनार्थी आये थे। यद्यपि वह केवल पांच दिन वहाँ रहे तथापि श्रीभगवान् की अपार अनुकम्पा का प्रसाद उन्हे प्राप्त हुआ। श्रीभगवान् की जीवनी 'सल्फ रियलाईजेशन' (वर्तमान पुस्तक का अधिकाश भाग उसी पर आधारित है) के लिए सामग्री एकत्रित करने वाले नरसिंह स्वामी ने उस दर्शनार्थी भक्त का नाम और पता जानने का निश्चय किया। अपूर्व उल्लास
और शान्ति उसके चेहरे पर झलकती थी और श्रीभगवान की करुण दष्टि का प्रसाद उसे प्राप्त हुआ । प्रतिदिन वह दर्शनार्थी श्रीभगवान् की प्रशस्ति मे एक तमिल गीत की रचना करता था। इन गीतो में अपूर्व उल्लास, स्फति और भक्ति-भावना भरी थी। भगवान् की प्रशस्ति मे रचित गीतो मे से कुछ गीत ऐसे भी हैं जो आज तक गाये जाते हैं। वाद मे नरसिंह स्वामी दर्शनार्थी के सम्बन्ध में और अधिक विवरण ज्ञात करने के लिए, उसके बताये सत्यमगलम नगर मे गये, परन्तु वहाँ इस प्रकार का कोई व्यक्ति नहीं मिला। सत्यमगलम का अर्थ है 'मानन्द धाम' और ऐसा कहा जाता है कि दर्शनार्थी शायद किसी