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________________ रमण महपि या तव वै दूसरो को मेग परिचय ठीक-ठीक बता रहे थ । परन्तु पहले उन्होने मुझे केवल एक वार देग्या था और इस बीच उन्होंने सहस्रो व्यक्तियो को देखा था। उन्होने परीक्ष-ज्ञान वा आश्रय लिया, जैसे हम विश्व-कोप की ओर निर्देश करते है । मैं लगभग तीन घण्टे तक उनका उपदेश सुनता रहा। "वाद मे मुझे प्यास लगी। क्याकि चढाई बढी कठिन थी, परन्तु मैंने मुंह से कुछ नहीं कहा । फिर भी उन्ह पता चल गया और उन्होंने एक शिष्य मे लेमनेड लाने के लिए कहा । "अन्त में मैंने उनके मम्मग्य नत मस्तक होकर विदाई ली और अपने बूट पहनने के लिए मैं नन्दग में बाहर गया । वे भी बाहर आये और उन्होंने मुझमे फिर आने के लिए वहा । "यह बडी विचित्र बात है कि उनकी उपस्थिति मे व्यक्ति मे कितना महान् परिवतन हो जाता है।" इसमे कोई सन्देह नहीं कि जो भी व्यक्ति श्रीभगवान् के मम्मुम्ब वैठना था, उनके लिए खुली पुस्तक के समान था, फिर भी हम्फ्रीज़ की परोक्षज्ञान मम्वन्धी धारणा गलत यो । यद्यपि लोगो की सहायता और उनका मार्ग दर्शन करने के लिए श्रीभगवान् उन्हे बटी गहगई मे देखते थे तथापि वह मानवीय धरातल पर इस प्रकार की शक्तियो का प्रयोग नहीं करते थे । चेहगे की उनकी स्मृति इननी चमत्कारिक थी जितनी कि पुस्तको की। उनके दर्शनो के लिए महस्रो लोग आते थे, परन्तु जो भक्त एक बार उनके दशन कर गया वह उमे कभी भी नही भूलते थे । अगर कोई व्यक्ति वो वाद वापम आता, वह फिर भी उसे पहचान लेते । न ही वह किसी भक्त की जीवनगाथा को कभी भूलते थे । नरसिंहय्या ने उनमे हम्फ्रीज़ के सम्बन्ध म अवश्य चर्चा की होगी । जव किमी विपय के सम्बन्ध में सर्वोत्तम रीति मे बात न होती वह अत्यन्त विवेक का परिचय देते परन्तु उनमे मामान्यत बाल-सुलभ मरलता यी और वह वातक की तरह किसी व्यक्ति के सम्बन्ध में उमके मामने ही बात करते, न तो स्वय ही व्यग्रता का परिचय देते और न दूसरे को व्यग्र करते । खाने-पीने के सम्बन्ध मे वह न केवल सावधान रहते थे बल्कि इम वात की पूरी देखभाल करते थे कि अतिथि की तृप्ति हुई है या नहीं। हम्फ्रीज़ महोदय में चमत्कारिक मिद्वियो का आविर्भाव होने लगा, परन्तु श्रीभगवान् ने उन्हे चेतावनी दी कि वह उनमे आसक्त न हो। हम्फ्रीज़ ने अपनी प्रवल इच्छा शक्ति के बल पर इस प्रलोभन पर विजय भी पायी । वस्तुत श्रीभगवान् के प्रभाव के कारण नात्रिक शक्तियों में उमकी दिलचस्पी बिलकुल समाप्त हो गयी।
SR No.034101
Book TitleRaman Maharshi Evam Aatm Gyan Ka Marg
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAathar Aasyon
PublisherShivlal Agarwal and Company
Publication Year1967
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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