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रमण महर्षि इमलिए उन्हे फिर आने की अनुमति प्रदान करें। एक महीना बीत गया, पर कोई उत्तर नही आया । तब उन्होने एक स्वीकृतिसूचक रजिस्टर्ड लेटर भेजा और इस बार उन्होने लिखा "मुझे कितने ही जन्म धारण करने हैं, मैंने केवल आपसे ही उपदेश लेने का निर्णय किया है। मैं शपथ लेकर कहता हूँ, अगर आप मुझे अपने उपदेश का अपात्र समझकर इस जीवन मे छोड देंगे, तो आपको इस प्रयोजन के लिए फिर जन्म ग्रहण करना पडेगा।" ।
कुछ दिन बाद श्रीभगवान् नटेश के सम्मुख स्वप्न मे प्रकट हुए और उन्होंने कहा, "मेरे सम्बन्ध मे निरन्तर मत सोचो। तुम्हे पहले भगवान् महेश्वर की अनुकम्पा प्राप्त करनी होगी। पहले उनका चिन्तन करो और उनकी अनुकम्पा प्राप्त करो। मेरी सहायता तुम्हे स्वय मिल जायेगी।" नटेश के घर मे नदी पर आरूढ भगवान् महेश्वर का एक चित्र था। वह इसे अपने सम्मुख रखकर भगवान् का चिन्तन करने लगे। कुछ दिन बाद उनके पत्र का उत्तर आया, "महर्षि पत्रो का उत्तर नही देते, आप यहां आकर उनके दर्शन कर सकते हैं।"
उन्होंने यह जानने के लिए कि यह पत्र श्रीभगवान् के आदेश पर लिखा गया था, एक और पत्र भेजा और फिर तिरुवन्नामलाई के लिए प्रस्थान कर दिया । अपने स्वप्न मे बताये गये मार्ग का अनुसरण करते हुए वह पहले नगर के बडे मन्दिर मे गये। यहां उन्होने अरुणाचलेश्वर के दर्शन किये और वही रात गुजारी। वहां उन्हें एक ब्राह्मण मिला जिसने उन्हें स्वामी के दशनो से गेका और कहा, "मेरी बात ध्यान देकर सुने, मैंने रमण महर्षि के निकट सोलह वप विताये हैं और उनका अनुग्रह मुझे प्राप्त नहीं हुआ। वह प्रत्येक वस्तु के प्रति उदासीन हैं। अगर आप उनके आगे अपना सिर भी पटक दें, तो भी उन्हे आप मे कोई दिलचस्पी नही होगी। उनका अनुग्रह प्राप्त करना असम्भव है । इमलिए उनके दर्शनो का कोई लाभ नही ।" ।
यह इस बात का अद्भुत उदाहरण है कि श्रीभगवान अपने भक्तो से क्या अपेक्षा करते थे। जिन भक्तो के हृदय ग्रहणशील होते थे, वह उन्हे मा मे भी अधिक कृपालु पाते थे। कई भय और सम्मान की मिश्रित भावना से कांप उठते थे । जो व्यक्ति वाह्य चिह्नो के आधार पर उनके सम्बन्ध मे जानना चाहता था, उसे कुछ भी हाथ नही लगता था । चूंकि नटेश ने स्वामी के पाम जाने का आग्रह किया, इमलिए एक दूसरे व्यक्ति ने उनमे कहा, "आपको म्वामी का अनुग्रह प्राप्त होगा या नहीं, यह जानने का उपाय मैं आपको बताता है। पहाडी पर पाद्रि नाम के एक स्वामी रहते हैं। वह किसी मे नही मिलते-जुलते और जो लोग उनसे मिलने की कोशिश करते है, वह प्राय उन्ह दूर भगा देते है। अगर आप उनकी दया प्राप्त कर लें, तो आपको मफलता मिल मकती है।"