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कायोत्सर्ग
प्रयोजन
प्रवृत्ति - निवृत्ति के सन्तुलन के लिए और उपसर्गों को सहने के लिए • सो उस्सग्गो दुविहो, चेट्ठाए अभिभवे य णायव्वो । भिक्खारिआइ पढमो उवसग्गाभिउजणे बीओ । ।
आवश्यक निर्युक्ति १४६६ वह उत्सर्ग (कायोत्सर्ग) दो प्रकार का होता है— चेष्टा और अभिभव | भिक्षा आदि प्रवृत्ति के पश्चात् ( प्रवृत्ति - निवृत्ति के सतुलन के लिए) कायोत्सर्ग करना "चेष्टा कायोत्सर्ग" है और प्राप्त उपसर्गों को सहन करने के लिये कायोत्सर्ग करना 'अभिभव कायोत्सर्ग' है ।
भय-निवारण के लिए
• मोहपयडीभय अभिभवितु जो कुणइ काउसग्ग तु ।
आव० निर्युक्ति १४६८ भय मोहनीय कर्म की एक प्रकृति (अवस्था) है। उसका अभिभव करने के लिए कायोत्सर्ग किया जाता है, बाह्य कारणो का प्रभाव करने के लिये नही ।
स्वदोष दर्शन के लिए
• काउस्सग्ग मोक्खपहदेसिओ जाणिऊण तो धीरा । दिवसाइआरजाणट्टयाइ
ठायति उस्सग्ग ।।
आव० निर्युक्ति १५११