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४ प्रेक्षाध्यान
चैतन्यकेन्द्र प्रेक्षा • एत्थोवरए त झोसमाणे अय संधी ति अदक्खु।।
आयारो ५१२० देखे भाष्य जो आरम्भ से उपरत है, उसने अनारम्भ की साधना करते हुए “यह सधि है ऐसा देखा है।" सधि शब्द का अर्थ है-अप्रमाद के अध्यवसाय को जोडनेवाला शरीरवर्ती साधन जिसे चैतन्यकेन्द्र या चक्र कहा जाता है।
लेश्या ध्यान • अवहिलेस्से परिव्वए।
आयारो ६।१०६ मुनि अवहिर्लेश्य, अप्रशस्त लेश्याओं का वर्जन कर परिव्रजन करे। • तम्हा एयाण लेसाण, अणुभागे वियाणिया। अप्पसत्थाओ वज्जित्ता, पसत्थाओ अहिडेजासि ।।
उत्तरायणाणि ३४।६१ इने लेश्याओं के अनुभागो को जानकर मुनि अप्रशस्त लेश्याओं का वर्जन करे और प्रशस्त लेश्याओं को स्वीकार करे।
अनुप्रेक्षा • धम्मस्स ण झाणस्स चत्तारि अणुप्पेहाओ पण्णत्ताओ, तं जहाएगाणुप्पेहा, अणिचाणुप्पेहा, असरणाणुप्पेहा, संसाराणुप्पेहा ।
ठाण ४।६८ धर्म्यध्यान की चार अनुप्रेक्षाए है—एकत्व, अनित्य, अशरण एव ससार।