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२ प्रेक्षाध्यान
अनासक्ति का विकास • अण्णहा ण पासए परिहरेजा।
आयारो २१११८ .. अध्यात्म तत्त्वदर्शी वस्तुओं का परिभोग अन्यथा करे, आसक्ति से न
करे।
स्वरूप
अप्रमाद की साधना • धीरे मुहुतमवि णो पमायए।
आयारो २१११ धीर पुरुष मुहूर्त्तमात्र भी प्रमाद न करे । • उहिए णो पमायए।
आयारो ५।२३१ पुरुष उत्थित होकर प्रमाद न करे। • सव्वतो पमत्तस्स भय, सव्वतो अप्पमत्तस्स णत्यि भय। आयारो ३ १७५
प्रमत्त को सब ओर से भय होता है। अप्रमत्त को कही से भी भय
नहीं होता। • एगमप्पाण सपेहाए।
आयारो ४।३ एक आत्मा की ही सप्रेक्षा करे। • राइ दिव पि जयमाणे, अप्पमत्ते समाहिए झाति। आयारो ६।२।४
भगवान् महावीर रात और दिन स्थिर और एकाग्र तथा अप्रमत्त रहकर समाहित अवस्था मे ध्यान करते थे। उव्वेहती लोगमिण महत बुद्धपमत्तेसु परिव्वएज्जा। सूयगडो १।१२।१८ जो इस महान् लोक को निकटता से देखता है वह अप्रमत विहार कर
सकता है। • समय गोयम | मा पमायए।
उत्तरायणाणि १०१ हे गौतम (मानव) । तू क्षण भर भी प्रमाद मत कर। कायोत्सर्ग • असइ वोसट्टचत्तदेहे ‘स भिक्खू। दसवेआलियं १०११३