________________
३२ प्रेक्षाध्यान
अशीच भावना • अतो अतो पूतिदहतराणि, पासति, पुटोवि सवताई।
आयागे २११३० पुरुष इस अशुचि शरीर के भीतर से भीतर देखता है और झरते हुए विविध स्रोतो को भी देखता है।
प्रक्रिया ध्येय के साथ एकात्मकता • तद्दिडीए तम्मुत्तीए तप्पुरक्कारे तस्सण्णी तन्निवेसणे।
आयारो ५।११० साधक ध्येय के प्रति दृष्टि नियोजित करे, तन्मय बने, ध्येय को प्रमुख
बनाये, उसकी स्मृति मे उपस्थित रहे एवं उसमे दत्तचित्त रहे। ध्यान के पश्चात् अनुप्रेक्षा का अभ्यास • झाणोवरमेऽवि मुणी णिच्चमणिच्चाइचितणो वरमो।
ध्यानशतक श्लोक ६५ ध्यान को समाप्त कर अनित्य आदि अनुप्रेक्षाओं का अभ्यास करना चाहिए।
परिणाम दृढ़ कर्म का शिथिलीकरण, असातवेदनीय कर्म का अनुपचय, संसार से शीघ्र-मुक्ति • अणुप्पेहाए णं भते । जीवे कि जणयइ ?
अणुपेहाए ण आउयवञ्जाओ सत्तकम्मप्पगडीओ घणियबंधणबद्धाओ सिढिलबधणबद्धाओ पकरेइ, दीहलालट्टिइयाओ हस्सकालड्डिइयाओ पकरेइ, तिव्वाणुभावाओ मदाणुभावो पकरेइ, बहुपएसग्गाओ अप्पएसग्गाओ पकरेइ आउय च ण कम्म सिय बधइ सिय नो बधइ ।