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कि ऐसा करना गलत है। उन्हें कभी अपने जननांगों को नहीं छूने दिया गया। बच्चे को कैसे इसकी अनुमति हो? वे बच्चे को उसके जननांग न छूने के लिए बाध्य करते हैं, वे बच्चे को दंडित करते हैं।
बच्चा क्या कर सकता है? वह यह नहीं समझ पाता कि जननांगों में गलत क्या है? वे उसके हाथों उसकी नाक, उसके पांवों के अंगूठों की भांति ही उसका एक अंग हैं, वह अपने शरीर के हरेक स्थान को छू सकता है, किंतु जननांगों को नहीं। और यदि वह बारंबार दंडित किया जाता है तो निःसंदेह अपनी ऊर्जा को वह जननांगों से बलात वापस भेजना आरंभ कर देता है। इसे वहां प्रवाहित नहीं होने देना चाहिए क्योंकि अगर यह उस ओर प्रवाहित होती है तो वह उनसे खेलना चाहता है। और यह सुखद है, और कुछ भी गलत नहीं है, बच्चा यह देख नहीं पाता कि इसमे गलत क्या है। वास्तव में यह शरीर का सबसे सुखदायी अंग है।
लेकिन मां-बाप भयभीत हैं, और बच्चा उनके चेहरे और उनकी आंखें देख सकता है : अचानक ही-वे सामान्य व्यक्ति थे-जिस क्षण वह अपने जनन अंगों को स्पर्श करता है वे असामान्य बन जाते हैं, लगभग पागल से। उनमें कुछ इतनी कठोरता से बदलता है कि बच्चा भी भयभीत हो जाता है-कुछ न कुछ गलती अवश्य होनी चाहिए इसमें। यह कुछ न कुछ गलत माता-पिता के मन में है, बच्चे के शरीर में नहीं है, लेकिन बच्चा कर ही क्या सकता है?
इस स्थिति को, इस घबड़ाहट भरी परिस्थिति को दरकिनार करने भर से ही, सर्वाधिक सुंदर अनुभूतियों में से एक को इतनी गहराई तक दमित किया गया है कि स्त्रियों ने चरम सुख, ऑर्गाज्म को अनुभव ही नहीं किया है। भारत में स्त्रियां अभी भी नहीं जानती कि चरम सुख क्या है। उन्होंने इसके बारे में कभी सुना ही नहीं है; वास्तव में वे यही जानती हैं कि यौनानद पुरुषों के लिए है, स्त्रियों के लिए नहीं। बेहूदी बात है यह, क्योंकि परमात्मा उग्र पुरुषवादी नहीं है, और वह पुरुषों के पक्ष और स्त्रियों के विरोध में नहीं है। उसने एक समान रूप से प्रत्येक को दिया है। लेकिन लड़कियों पर लड़की की तुलना में अधिक रोकथाम की जाती है, क्योंकि समाज पुरुष-प्रधान है। अत: उनका कहना है, लड़के तो लड़के हैं, अगर तुम उन्हें रोक दो, तब भी वे कुछ न कुछ तो कर ही लेंगे। लेकिन लड़कियां, उन्हें तो संस्कृति, नैतिकता, शुद्धता, कौमार्य का प्रतिमान बनना पड़ता है। उन्हें अपने जननांगों को छूने की जरा भी अनुमति नहीं है। इसलिए बाद में चरम सुख उपलब्ध करना कैसे संभव है, क्योंकि ऊर्जा उस रास्ते जाती ही नहीं है?
और क्योंकि ऊर्जा उस रास्ते नहीं जाती है, हजारों समस्याएं उठ खड़ी होती हैं। स्त्रियां उन्मादी, हिस्टेरिकल हो जाती हैं। पुरुष यौन से अत्यधिक ग्रसित हो जाते हैं। स्त्रियां करीब-करीब उदास और अवसादग्रस्त हो जाती हैं, क्योंकि वे काम-अनुभव का आनंद नहीं ले सकतीं, इसके करीब-करीब विरोध में हो जाती हैं। और पुरुष यौन में बहुत अधिक रुचि रखने लगते हैं, क्योंकि सारे अनुभवों में कुछ न कुछ छूट जाता है। पुरुष यह अनुभव करता रहता है कि वह कुछ चूक रहा है, कुछ चूक रहा है, अत: और अधिक काम-अनुभव में करूं, इसे कई स्त्रियों के साथ करूं। यह समस्या नहीं है। तुम