________________
पता भी नहीं पता। यह गर्भ ही उसका सारा जीवन रहा है, उसे तो बस इतना ही पता है। वह भयभीत है। ठीक यही परिस्थिति है, इंद्रियों से घिरे हुए, हम एक सीमित अवस्था, एक कारागृह में जीते हैं।
व्यक्ति को थोड़ा साहसी, हिम्मतवर होना पड़ेगा। ठीक अभी तुम जहां भी हो और तुम जैसे भी हो, तुम्हारे साथ कुछ भी घटित नहीं हो रहा है। अपने जोखिम उठाओ। अशात में उतरो। फिर जीवन के नये ढंग को पाने का प्रयास करो।
'इसके उपरांत देह के उपयोग के बिना ही तत्क्षण बोध और प्रकृति, पौगलिक जगत पर पूर्ण स्वामित्व उपलब्ध हो जाता है।'
अब तक तुम पौद्गलिक जगत के वशीभूत रहे हो। एक बार तुम जान लो कि तुम्हारे पास पौद्गलिक जगत से पूर्णत: मुक्त, अपनी ऊर्जा है, तो तुम
से पर्णत: मक्त, अपनी ऊर्जा है, तो तम मालिक बन जाते हो। अब संसार तम पर और अधिक कब्जा नहीं रख पाता, तुम इसके स्वामी हो। केवल वही जो त्याग सकते हैं असली मालिक बन जाते हैं।'सत्व और पुरुष का विभेद बोध होने के उपरांत ही अस्तित्व की समस्त दशाओं का ज्ञान और उन पर प्रभुत्व उदित होता है।
और सत्व और पुरुष, बुद्धिमत्ता और जागरूकता के मध्य सूक्ष्मतम विभेद को जानना होगा। स्वयं को शरीर से अलग समझना बहुत सरल है। शरीर इतना स्थूल है कि तुम्हें इसकी प्रतीति हो सकती है, तुम यह नहीं हो सकते। तुमको इसके भीतर होना चाहिए। यह देखना अत्यंत सरल है कि तुम आंखें नहीं हो सकते। तुम्हें तो वह होना चाहिए जो आंखों के दवारा देखता है, पीछे छिपा है; वरना आंखों के
द्वारा कौन देखेगा? तुम्हारा चश्मा तो देख नहीं सकता। चश्मे के पीछे आंखों की जरूरत होती है। तुम्हारी आंखें भी चश्मे की भांति हैं। वे –बश्मा ही हैं, वे देख नहीं सकतीं। देखने के लिए कहीं पीछे तुम्हारी आवश्यता है। लेकिन सूक्ष्मतम तादात्म्य बुद्धि के साथ होता है। तुम्हारी सोचने की सामर्थ्य, तुम्हारी बुद्धि की समझ की क्षमता, यही सूक्ष्मतम चीज है। जागरूकता और बुद्धिमत्ता के बीच विभेद कर पाना बेहद कठिन है। किंतु इनमें भेद किया जा सकता है।
धीमे-धीमे, कदम दर कदम, पहले तो यह जान लो कि तुम देह नहीं हो। इस समझ की गहरे में विकसित, संघनित होने दो। फिर यह जानो कि तुम इंद्रियां नहीं हो। इस समझ को विकसित, घनीभूत होने दो। फिर यह जानो कि तुम तन्मात्राएं, ज्ञानेंद्रियों के पीछे के ऊर्जा-कुंड नहीं हो। इस बात को भी विकसित और संकेंद्रित होने दो। और तब तम यह देख पाने में समर्थ हो जाओगे कि बदधि भी ऊर्जा का एककंड है। यह एक सहभागी कंड है जिसमें तुम्हारी आंखें अपनी ऊर्जा उड़ेलती हैं, कान अपनी ऊर्जा उड़ेलते हैं, हाथ अपनी ऊर्जा उड़ेलते हैं। सारी इंद्रियां नदियों की भांति हैं और बदधिमत्ता केंद्रीय स्थान है, जिसमें वे सूचनाएं लेकर आती हैं और उड़ेल देती हैं।
जो कुछ भी तुम्हारा मन जानता है, वह इंद्रियों द्वारा दिया गया है। तुमने रंग देख लिए हैं, -तुम्हारा मन इन्हें जानता है। यदि तुम वर्णांध, रंगों के प्रति अंधे हो, यदि तुम हरा रंग नहीं देख सकते, तब