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अब सूत्र :
उनकी बोध की शक्ति, वास्तविक स्वरूप, अस्मिता, सर्वव्यापकता, और क्रिया-कलापों पर संयम साधने से, ज्ञानेंद्रियों पर स्वामित्व उपलब्ध हो जाता है।'
समझने के लिए पहली बात यह है कि तुम्हारे पास संवेदी इंद्रियां हैं, किंतु तुम संवेदना खो चुके हो। तुम्हारे संवेदी अंश लगभग संवेदना शून्य मृत हैं वे तुम्हारे शरीर पर बस हैं भर, लेकिन उनमें ऊर्जा प्रवाहित नहीं हो रही है, वे तुम्हारे अस्तित्व के जीवंत अंग नहीं हैं। तुम्हारे भीतर कुछ मृतप्राय: हो चुका है, यह ठंडा, अवरुद्ध हो गया है। हजारों वर्षों के दमन के कारण सारी मानव-जाति के साथ यही घट गया है और शरीर के विरोध में चली आ रही विचार धाराओं और संस्कारबद्धताओं के हजारों वर्षों ने तुम्हें पंगु बना दिया है, तुम बस नाम के लिए जीवित हो ।
अतः पहला काम यही किया जाना है तुम्हारे संवेदी अंगों को वास्तविक रूप से जीवंत और संवेदनशील होना चाहिए, केवल तभी उन पर स्वामित्व हो सकता है। तुम देखते हो परंतु तुम गहराई से नहीं देखते। तुम वस्तुओं की सतह भर देखते हो। तुम स्पर्श करते हो लेकिन तुम्हारे स्पर्श में कोई उष्णता नहीं है। तुम्हारे स्पर्श से कुछ भी अंदर और बाहर प्रवाहित नहीं होता। तुम सुनते भी होंपक्षी गीत गाए चले जाते हैं और तुम सुनते हो, और तुम कह सकते हो, ही, मैं सुन रहा हूं और तुम गलत हो तुम सुन रहे हों लेकिन यह कभी तुम्हारे अस्तित्व के अंतर्तम केंद्र तक नहीं पहुंचता। यह तुम्हारे भीतर नृत्य करता हुआ प्रविष्ट नहीं होता, यह तुम्हारे भीतर खिलावट में तुम्हारी पर्तों के खुलने में सहायता नहीं करता।
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इन ज्ञानेंद्रियों को पुनः ऊर्जावान कर देना है। ध्यान रहे, योग शरीर के विरोध में नहीं है। योग कहता है, शरीर के पार जाओ; लेकिन यह शरीर के विरुद्ध नहीं है। योग कहता है, शरीर का उपयोग करो, इसके द्वारा उपयोग में मत आओ; लेकिन यह शरीर के विरोध में नहीं है। योग कहता है, शरीर तुम्हारा मंदिर है। तुम शरीर में हो, और शरीर इतनी सुंदर संघटना है, इतनी जटिल और इतनी सूक्ष्म, इतनी रहस्यपूर्ण और इसके माध्यम से कितने ज्यादा आयाम खुलते हैं और ये ज्ञानेद्रिया ही एकमात्र
द्वार और झरोखे हैं जिनके द्वारा तुम परमात्मा तक पहुंचोगे - इसलिए उनको मुर्दा मत होने दो। उन्हें और — जीवंत बनाओ। उन्हें तरंगित, स्पंदित और स्टेनले केलेमैन की शब्दावली में 'प्रवाहमान' होने दो। यह बिलकुल ठीक शब्द है उन्हें एक धारा की भांति प्रवाहित होने दो, उमड़ने दो। तुम्हें यह अनुभूति हो सकती है। तुम्हारा हाथ अगर यह ऊर्जा की धारा की भांति प्रवाहित हो रहा है, तो तुम्हें स्पंदन की अनुभूति महसूस होगी, तुम्हें अहसास होगा कि हाथ के भीतर कुछ प्रवाहित हो रहा है और संपर्क बनाना चाहता है, संबंधित होना चाहता है।