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________________ जब मैं कहता हं आओ मेरा अनुसरण करो, मैं अपने ज्ञान का अनुसरण करने को नहीं कह रहा हूं। जब मैं कहता हूं आओ मेरा अनुसरण करो, मैं कह रहा हूं कि आओ और अपने ज्ञान के बिना मैं जो हं उसका अनुसरण करो। जब मैं कहता हं आओ मेरा अनुसरण करों तो मैं तम्हें अशात की ओर आने को कह रहा हूं। मैं तुम्हें अज्ञेय की ओर आने का निमंत्रण दे रहा हूं। जब मैं कहता हूं आओ, मेरा अनुसरण करो तो मैं अपना अनुसरण करने को नहीं कह रहा हूं-क्योंकि मैं नहीं हूं। मैं तुम्हें एक विराट शून्यता में आमंत्रित कर रहा हूं। एक बार तुम द्वार में प्रविष्ट हो जाओ, तुम्हें न तो मैं मिलूंगा न तुम। तुम्हें कुछ पूर्णत: भिन्न ही मिलेगा। यही है जिसे लोगों ने परमात्मा कहा है। और मुझे पता है कि कई बार तुम मेरे अस्तित्व की सुवास की अनुभूति में समर्थ होओगे और कई बार यह खो जाएगी, क्योंकि ऐसी भाव-दशाएं होती हैं जब तुम मेरे निकट होते हो, और ऐसी भावदशाएं होती हैं जब तुम मुझसे दूर, बहुत दूर होते हो। जब तुम निकट होते हो तो सुवास आएगी; जब तुम दूर होओगे तो तुम इसे खो दोगे। अत: उन भाव-दशाओं की अनुभूति का प्रयास करो जब तुम मुझसे निकटता महसूस करते हो, और उन भाव-दशाओं में ज्यादा से ज्यादा रहो, उन भाव-दशाओं में और-और विश्रांत हो जाओ। यह मेरे और तुम्हारे बीच के भौतिक अंतराल की बात नहीं है। यह आध्यात्मिक अंतराल का प्रश्न है। यदि हंसते समय तुम्हें मुझसे निकटता अनुभव हो और अचानक यह सुवास तुम्हारे नासापुटों और अस्तित्व को भर दे, तो और हंसना सीखो। अगर तुम्हें केवल यहीं पर, बस मुझे देखते हुए, जब विचारों की आपाधापी न होती हो, यह सुवास अनुभव होती हो, तो विचारों को और-और विदा करना सीखो। जो कुछ भी तुम महसूस कर रहे हो, उस सुनिश्चित भाव-दशा के प्रति और-और उपलब्ध हो जाओ, और मेरी सुवास तुम्हारी सुवास बन जाएगी। क्योंकि यह न मेरी है न तुम्हारी, यह परमात्मा की सुवास है। प्रश्न: ओशो, पाँच महीनों तक स्त्रोत से पीकर भी मेरी प्यास कम नहीं हुई, इसने मुझे और प्यासा कर दिया है। आपके पानी में निश्चित ही कुछ अनूठापन है। ध्यान के समय मुझे यह सुनाई पड़ा:
SR No.034099
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages471
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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