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________________ जाता है। एक हिंदू तुम्हारे प्रति भला नहीं था, सभी हिंदू नाकारा हो जाते हैं। तुम बस प्रतीक्षा करो। बस एक आदमी ही पूरी मानवता के लिए अश्रद्धा उत्पन्न कर सकता है। धा का व्यक्ति श्रद्धा किए चला जाता है। चाहे उसकी श्रद्धा को कुछ भी हो जाए, एक बात कभी नहीं होती : वह कभी किसी को अपनी श्रद्धा खंडित करने की अनुमति नहीं देता। उसकी श्रद्धा बढ़ती चली जाती है। श्रद्धा परमात्मा है। लोगों ने तुमसे परमात्मा पर श्रद्धा करने का कहा हुआ है; मैं तुमसे कहता हूं श्रद्धा परमात्मा है। परमात्मा के बारे में सभी कुछ भूल जाओ; बस श्रद्धा करो, और तुम जहां कहीं भी होओगे परमात्मा तुमको खोजता और तलाश करता हुआ आ जाएगा। प्रश्न : बुद्ध को क्या प्रेरित करता है? यह प्रश्न असंगत है, क्योंकि बुद्ध केवल तभी बुद्ध बनता है जब सारी प्रेरणाएं विदा हो चुकी हैं, सारी वासनाएं तिरोहित हो चुकी हैं। एक बुद्ध केवल तभी बुद्ध होता है क्योंकि उसके करने के लिए कुछ भी नहीं है, चाहने के लिए कुछ भी नहीं, न कहीं जाना है और न ही कुछ उपलब्ध करना है। उपलब्ध करने वाला मन खो जाता हैं-तभी कोई बुद्ध बनता है। इसलिए अगर तुम पूछते हो : बुद्ध को क्या प्रेरित करता है? तब तुम एक असंगत प्रश्न पूछ रहे हो। उसे कुछ भी प्रेरित नहीं करता, इसीलिए तो वह बुद्ध है। सिद्धार्थ गौतम को संबोधि घटित हुई। कहानी इस प्रकार है कि एक ब्राह्मण वहां से गुजर रहा था। उसने इतना सुंदर व्यक्ति कभी नहीं देखा था। अपने वृक्ष के नीचे बैठे बुद्ध को किसी अपार्थिव आभा ने घेर रखा था, वे प्रदीप्त थे, वहां एक गहन शांति थी। ब्राह्मण आगे न बढ़ सका। यद्यपि वह शीघ्रता में था, उसे कहीं पहुंचना था, लेकिन बुद्ध के मौन ने उसे आकर्षित कर लिया। वह भूल गया कि वह कहां जा रहा था, अपनी कार्य करने की प्रेरणा को वह भूल गया। इस व्यक्ति के पास आकर जिसने प्रेरणा के पार की अवस्था उपलब्ध कर ली थी, वह उसकी भंवर के खिंचाव से आकर्षित कर लिया गया। मंत्रमुग्ध होकर वह वहीं ठहरा रहा। कहानी कहती है कई घंटे बीत गए। फिर अचानक उसको होश आया कि वह क्या कर रहा था? तब अचानक उसको याद पड़ा कि वह कहीं जा रहा था, लेकिन कहां? फिर उसने पूछा, मैं कौन है ?-जैसे कि पूरी पहचान, सारा अतीत कहीं खो गया था। वह कौन था इस बात को भी वह अपने संज्ञान में नहीं ला पाया। फिर उसने शांत बैठे हुए बुद्ध को पकड कर हिलाया और कहा : आपने मेरे साथ क्या कर दिया? मैं तो पूरी तरह से भूल गया हूं कि मैं कहा जा रहा था, और में कहा गया है कि मैं कहां जा रहा था, और मैं कहां से आ रहा था, और
SR No.034099
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages471
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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