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________________ असफलताएं और सफलताएं, एक विराट विविधता, लेकिन सभी कुछ एक स्वर में, लयबद्धता में हैं। तुम एक वाद्य- समूह बन गए हो। प्रत्येक अन्य सभी के साथ सहयोग कर रहा है, और अंतत: सभी तुम्हारे अस्तित्व के परम केंद्र के साथ सहयोग कर रहे हैं। यही कारण है कि भारत में हमने संन्यासियों को 'स्वामी' कहा है। स्वामी का अर्थ है. प्रभु, जिसका स्वयं पर प्रभुत्व है। तुम स्वामी केवल तब बनते हो जब तुमने इस लयबद्धता को उपलब्ध कर लिया है जिसकी बात पतंजलि कर रहे हैं। चाहे वह जो कुछ भी हो पतंजलि किसी चीज के भी विरोध में नहीं हैं; वे लयबद्धता के पक्ष में हैं। वे नकार के विरोध में हैं। वे किसी चीज के विरोध में नहीं हैं, वे शरीर के विरोध में नहीं हैं, वे देह विरोधी व्यक्ति नहीं हैं, वे संसार के विरोधी नहीं हैं, जीवन- निषेधक नहीं हैं वे, वे सभी कुछ आत्मसात कर लेते हैं और इस भांति आत्मसात करके वे उच्चतर संश्लेषण का सृजन करते हैं। और परम संश्लेषण तब होता है जब हर चीज सहशोग में हो, जहां एक भी स्वर लयविहीन न हो। मैंने एक कथा सुनी है, एक बबून का पाच वर्षीय बच्चा जन्म से अभी तक एक शब्द भी नहीं बोला था। उसके माता-पिता को विश्वास हो चुका था कि उनका बच्चा गूंगा है, जब तक कि एक रात उसने केला नहीं खाया। अचानक उसने अपनी मां की ओर निगाह उठाई और स्पष्ट रूप से कहा, 'मुझे सझा केला खिला दिया, कैसी घटिया बात थी यह माता बबून अतिहर्षित हो गई और उस ने अपने बच्चे से पूछा कि इसके पहले वह कभी क्यों नहीं बोला। ठीक है, छोटे बस्त ने कहा, अब तक भोजन ठीक जो था। यदि तुम लयबद्धता में हो तो तुम संसार के बारे में शिकायत नहीं करोगे, तुम किसी चीज के बारे मैं शिकायत नहीं करोगे। शिकायत कर्ता मन तो बस यह दिखा रहा है कि भीतर चीजें लयबद्धता में नहीं हैं : जब सभी कुछ लयबद्धता में हो तो कोई शिकायत नहीं होती है। अब तुम अपने तथाकथित संतों के पास चले जाओ, प्रत्येक व्यक्ति शिकायत कर रहा है-संसार की शिकायत, अभिलाषाओं की शिकायत) शरीर की शिकायत, इसकी और उसकी शिकायत। प्रत्येक व्यक्ति शिकायतों में जीता है, कुछ गड़बड़ है। संपूर्ण व्यक्ति वह है जिसके पास कोई शिकायतें नहीं हैं। वह व्यक्ति परमात्म-पुरुष हैं जिसने प्रत्येक चीज को स्वीकार कर लिया है, आत्मसात कर लिया है और ब्रह्मांड बन गया है, अब उसके भीतर कुछ भी उपद्रव नहीं रह गया है। एक और कहानी । जिस ढंग से उसने अपने बोलने वाले तोते को प्रशिक्षित किया था, उस पर इस वृद्ध महिला को गर्व था, और वह इसे पादरी को दिखा रही थी. यदि आप इसका बायां पैर खींचते हैं तो यह परमेश्वर की स्तुति बोलता है और यदि आप इसका दायां पैर खींचते हैं तो यह भजन दोहराता है, उसने समझाया। यदि दोनों पैर एक साथ खींच लो तो क्या होगा? पादरी ने पूछा ।
SR No.034099
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages471
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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