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________________ चाहिए जिनको यह देखता है और दूसरा इसको साक्षी द्वारा रंग दिया जाना चाहिए। साक्षी को अपनी ऊर्जा मन की ओर प्रवाहित कर देना चाहिए, केवल तभी मन वस्तुओं को जान सकता है। उदाहरण के लिए, एक वैज्ञानिक कार्यरत है, उसने एक व्यक्ति के शरीर का विच्छेदन किया आ है और वह बहु बारीकी से, उतनी सूक्ष्मता से जितनी उपकरणों द्वारा संभव है, निरीक्षण कर रहा है। वह आत्मा को खोज रहा है, और उसे कोई आत्मा नहीं मिलती, बस पदार्थ ही पदार्थ मिलता है। अधिक से अधिक उसे कुछ ऐसा मिल सकता है जो भौतिक विज्ञान के संसार से संबद्ध हो या रसायन विज्ञान के संसार से जुड़ा हो, लेकिन ऐसा कुछ नहीं मिलता है जो चेतना के संसार से संबंधित हो। और वह प्रयोगशाला से बाहर आता है और वह कहता है, 'वहां कोई चेतना नहीं है।' अब वह एक बात से चूक गया है। मृत शरीर में कौन देख रहा था, अपने आप को वह पूरी तरह से भूल चुका था। वैज्ञानिक विषय को देख रहा है, लेकिन वह अपने स्वयं के अस्तित्व को पूरी तरह से भूल गया है। वैज्ञानिक चेतना को बाहर खोजने का प्रयास कर रहा है, लेकिन वह उसको पूरी तरह से भूल चुका है। जो प्रयासरत है, वही चेतना है खोजने वाला ही खोजा जाने वाला है, वह विषयवस्तु पर अत्यधिक केंद्रित हो चुका है और विषयी, कर्ता भुला दिया गया है। विज्ञान वस्तु पर अत्यधिक केंद्रित है, और तथाकथित धर्म विषयी पर अत्यधिक केंद्रित हैं। लेकिन योग का कहना है: एकपक्षीय होने की कोई आवश्यकता नहीं है। स्मरण रखो कि संसार वहां है और यह भी स्मरण रखो कि तुम हो। विषय और विषयी दोनों की अपनी स्मृति को पूर्ण और समग्र होने दो। जब तुम्हारा मन तुम्हारी चेतना से प्रेरित होता है और वस्तुगत संसार से ओत-प्रोत होता है तब वहां पर सर्वज्ञता घटित हो जाती है। और पतंजलि कहते हैं : 'जब मन ज्ञाता और ज्ञेय के रंग में रंग जाता है, तब यह सर्वज्ञ हो जाता है।' यह उस सभी कुछ को जान सकता है जिसे जाना जा सकता है। जिसे जाना जा सकता है उस सभी को यह जान सकता है। फिर मन से कुछ भी छिप नहीं पाता। एक धार्मिक मन जिसे हम अंतर्मुखी मन कह सकते हैं- क्रमश: केवल अपने विषयी रूप को जान लेता है और यह कहना शुरू कर देता है कि संसार माया है, भ्रम है, एक स्वप्न है, जो उसी पदार्थ से बना है जिससे स्वप्न बनते हैं। एक वैज्ञानिक जो वस्तुओं पर बहुत अधिक केंद्रित है वस्तुगत जगत में विश्वास करना आरंभ कर देता है और कहता है कि केवल पदार्थ का ही अस्तित्व है; चेतना केवल एक काव्य मात्र है, स्वप्नदर्शियों की बातचीत है, अच्छी है, मनोहारी है, किंतु यह वास्तविकता नहीं है। वैज्ञानिक का कहना है कि चेतना एक भ्रांति है। बहिर्मुखी कहता है कि चेतना भ्रम है, अंतर्मुखी कहता है कि संसार भ्रम है। लेकिन योग सर्वोच्च विज्ञान है। पतंजलि कहते है दोनों यथार्थ हैं। वास्तविकता के दो आयाम होते हैं. बाह्य पक्ष और भीतरी पक्ष और स्मरण रखो, भीतरी पक्ष कैसे हो सकता है, बाह्य पक्ष के बिना इसका होना किस भांति संभव है? क्या तुम कल्पना कर सकते हो कि केवल भीतरी पक्ष का अस्तित्व
SR No.034099
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages471
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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