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यही वह स्थूल सोच है जो मनुष्य-जाति के प्रति हो गई है, इसने भीतर के रहस्य को मार डाला है। इसने लोगों को भौतिक शरीर के प्रति इतना आसक्त बना दिया है कि वे अपने भीतरी संसार को भूल चुके हैं। अब तो इसकी सत्ता को सिद्ध करना असंभव हो गया है। बुद्ध, कृष्ण और जीसस जैसे लोग पागल दिखाई पड़ते हैं। अंग्रेजी भाषा तथा अन्य पश्चिमी भाषाओं मे ऐसी पुस्तकें हैं जो सिद्ध करती हैं कि जीसस विक्षिप्त हैं। निःसंदेह यदि तुमने भीतरी संसार का कुछ नहीं जाना है तो वे विक्षिप्त दिखाई पड़ते हैं। यदि तुम भीतरी संसार के बारे में कुछ नहीं जानते हो तो वे विक्षिप्त हैं। तब वे पागल आदमी जैसे प्रतीत होते हैं, क्योंकि कभी-कभी वे परमात्मा से बातें करते हैं, और वे घोषणा करते हैं कि उनको उत्तर भी मिलते हैं। और तुम भीतर के संसार से सारा संपर्क खो चुके हो, इसलिए एक पागल आदमी और उनके बीच में क्या अंतर है? पागल आदमी भी आवाजें सुनता है। तुम इसे देख सकते हो; पागलखाने में चले जाओ और तुम देख सकते हो कि पागल लोग अकेले बैठे हैं और इतनी तन्मयता से बातें कर रहे हैं जैसे कि कोई वहां उपस्थित हो। भेद क्या है? जब गेथसेमाने के बाग में जीसस ने प्रार्थना की, आकाश की ओर अपने हाथ उठाए और परमात्मा से बातें करना आरंभ कर दी, तब क्या भेद है? ऐसा प्रतीत होता है कि वहां कोई नहीं है, जीसस भी उतने ही पागल हैं जितना कोई और पागल। जब सूली पर उन्होंने रोना और परमात्मा से बातें करना शुरू कर दिया, तो क्या अंतर है? क्योंकि वहां कई हजार लोग इकट्ठे हो गए थे, उनको वहां कोई भी नहीं दिखाई पड़ा। और जीसस ने कहा, पिता इन लोगों को क्षमा कर दो, क्योंकि वे नहीं जानते कि वे क्या कर रहे हैं। वे पागल हैं। वे किसके साथ बातें कर रहे हैं? वे अपने होशोहवास में नहीं हैं। धीरे-धीरे यदि तुम्हारा अंतर्तम संसार अपूर्ण है और तुम इसके साथ संपर्क खो चुके हो, तो तुम जीसस, कृष्ण, ब पतंजलि में विश्वास नहीं कर सकते हो। वे किसके बारे में बात कर रहे हैं। और तुम, जो बहुत चतुर लोग हो, अपने स्वप्नों के बारे में बहत वैज्ञानिक ढंग से बात किए चले जाते हो।
अनेक पागल लोग बहुत, बहुत तर्कयुक्त होते हैं। यदि तुम पागल लोगों की बातें सुनो तो तुम हैरान हो जाओगे। वे बहुत तर्कनिष्ठ, बहुत तर्कपूर्ण होते हैं, और एक सीमा तक तो तुम उनसे करीब-करीब राजी भी हो जाओगे।
मैंने एक व्यक्ति के बारे में सुना है, जो अपने किसी ऐसे संबंधी से मिलने गया था जो पागलखाने में था। उसी कोठरी में एक दूसरा रोगी भी था, और यह दूसरा व्यक्ति इतना भला आदमी, इतना आह्लादित दिख रहा था और वह इतनी गरिमा के साथ बैठा हुआ समाचार पत्र पढ़ रहा था कि इस मलाकाती ने उससे पूछा, आप तो जरा भी पागल नहीं लगते। उसने इस आदमी से बातचीत की और वह पूरी तरह से तर्कयुक्त, नितांत सामान्य था। मुलाकात करने आया व्यक्ति तो हैरान था। तुमको यहां पर क्यों रख दिया गया है? उसने बताया, मुझको अपने रिश्तदारों की वजह से यहां रखा गया है, वे मुझे यहां भेज देना चाहते थे क्योंकि वे उस सारी संपत्ति पर कब्जा जमाना चाहते थे जो मेरे पास है, और इसका यही एकमात्र उपाय था या तो मुझको मार डालों या मुझको पागलखाने में डाल दो।