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________________ अतीत एक स्थायित्व है। यही कारण है कि तुम अपने अतीत को बदल नहीं सकते, यह करीब-करीब स्थायी बन चुका है। अब तुम इसको परिवर्तित नहीं कर सकते। इसको बदलने का कोई उपाय नहीं है। यह स्थायी हो चुका है। वर्तमान सक्रियता है, रजस। वर्तमान एक सतत प्रक्रिया, गतिशीलता है। वर्तमान सक्रियता है और भविष्य जड़ है। अभी भी यह बीज में है, गहरी निद्रा में। बीज में वृक्ष सोया हुआ है, जड़त्व में है। भविष्य एक संभावना है, अतीत एक वास्तविकता है, और वर्तमान वास्तविकता की संभावना की ओर गतिशीलता है। अतीत वह है जो हो चुका है, भविष्य वह है जो होने जा रहा है, और वर्तमान दोनों के मध्य यात्रा-पथ है। वर्तमान भविष्य के अतीत बन जाने का, बीज के वृक्ष बन जाने का रास्ता है। किसी वस्तु का सार-तत्व, इन्हीं तीन गुणों के अनुपातों के अनूठेपन में निहित होता है।' अब भौतिकविदों का कहना है कि इलेक्ट्रॉन, न्यूट्रॉन और प्रोटीन मूल तत्व हैं, और प्रत्येक वस्तु इन्हीं से बनी है। प्रत्येक वस्तु इन्हीं तीन धनात्मक, उदासीन और ऋणात्मक कणों से बनी है। सत्व, रजस और तमस का ठीक यही अभिप्राय है. धनात्मक, उदासीन और ऋणात्मक और प्रत्येक वस्तु इन्हीं तीन से बनी है। बस अनपातों में भेद है, अन्यथा ये ही वे मूलभूत तत्व हैं जिन से मिल कर सारा संसार बना है। 'भिन्न-भिन्न मनों के द्वारा एक ही वस्तु विभिन्न ढंगों से देखी जाती है'.. .किंतु भिन्न प्रकार का मन एक ही वस्तु को भिन्न ढंग से देखता है। उदाहरण के लिए बगीचे में एक लकड़हारा आता है-वह पुष्पों को नहीं देखेगा, वह हरियाली की ओर नहीं देखेगा, वह लकड़ी की ओर-और इस लकडी से क्या बन सकता है, इसकी संभावना की ओर-कौन सा वृक्ष संदर मेज बन सकता है, कौन सा वृक्ष द्वार बन सकता है-बस यही देख रहा होगा। उसके लिए वृक्षों का अस्तित्व फर्नीचर बनाने की सामग्री के रूप में है। संभावित फर्नीचर, यही है जिसे वह देखेगा। और यदि कोई चित्रकार वहां आता है, तो वह फर्नीचर के बारे में जरा भी नहीं सोचेगा। एक क्षण के लिए भी फर्नीचर उसकी चेतना में नहीं आएगा। वह चित्र के बारे में, इन रंगों को कैनवास पर लाने के बारे में, विचार करेगा। यदि कोई कवि आता है, तो वह चित्रकारी के बारे में नहीं सोचेगा, वह कुछ और सोचेगा। एक दर्शनशास्त्री आता है, तो और वह किसी अन्य के बारे में सोचेगा। यह मन पर निर्भर करता है। वस्तु सदैव मन के माध्यम से देखी जाती है. मन इसे रंग प्रदान करता मैं तुमसे कुछ कहानियां कहता हूं :
SR No.034099
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages471
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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