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________________ ध्यान करूंगा, लेकिन अभी मेरे लिए यह ध्यान करने का समय नहीं है। पहले मैं आपके पास कौतुहलवश आ गया था, लेकिन धीरे-धीरे मैं इसमें फंसने लगा। मैंने स्वयं को रोका। रुकना कठिन था, लेकिन मैं भी दृढ़ इच्छा शक्ति वाला व्यक्ति हैं। तुम सजग नहीं हो सकते क्योंकि तुमने अपनी मूर्खता में, अपने अज्ञान में, अपनी मूर्छा में बहुत योगदान दिया हुआ है। इस निद्रा में, इस सुप्तावस्था में तुमने अपना जीवन और अनेक चीजें अर्पित कर रखी हैं। अब सजगता की पहली किरण आई और तुम अनुभव करोगे कि तुम्हारा सारा जीवन एक व्यर्थता रहा है। फिर भी तुम साहसी नहीं हो। इसीलिए लोग प्रभावों को बदलते चले जाते हैं, क्योंकि फिर वहां कोई खतरा नहीं है। और वे जड़ को कभी स्पर्श नहीं करते। एक बार ऐसा हुआ, मैं मुल्ला नसरुद्दीन के साथ यात्रा कर रहा था। अचानक उसे पता लगा कि उसका टिकट खो गया है। उसने अपनी सारी जेबों में-कोट की, शर्ट की, पेंट की, सभी में देखा-लेकिन मैं उसको देख रहा था, वह अपनी एक जेब में नहीं देख रहा था। इसलिए मैंने उससे कहा : तुम प्रत्येक जेब में देख रहे हों-सूटकेस में, बैग में और सारे सामान में, लेकिन तुम इस जेब में क्यों नहीं देखते? उसने कहा : मैं डरा हुआ हूं यदि टिकट वहां नहीं हुआ तो मैं मर जाऊंगा। मैं इसको इसीलिए छोड़ रहा हूं ताकि आशा बंधी रहे कि यदि टिकट कहीं और नहीं है तो कम से कम यह जेब तो बची हुई है, हो सकता है कि टिकट वहां हो? यदि मैं इसमें देख लूं और यह वहां न हुआ तो मैं मुर्दा होकर गिर जाऊंगा। तुम जानते हो कि देखना कहां है लेकिन फिर भी तुम भयभीत हो। तब तुम इसे अन्य स्थानों पर, बस उलझे रहने के लिए देखते रहते हो:। तुम धन में, शक्ति में, प्रतिष्ठा में, इसमें और उसमें देखते चले जाते हो, किंतु कभी भीतर, कभी अपने आंतरिक अस्तित्व में नहीं देखते हो। तुम भयभीत हो, ऐसा लगता है कि यदि तुम वहां देखो और कुछ न मिला तो तुम मुर्दा होकर गिर पड़ोगे। लेकिन वे लोग जिन्होंने वहां देखा है सदैव पाया है। एक भी अपवाद अभी तक नहीं हुआ है कि वह जो भीतर गया है उसको खजाना नहीं मिला हो। यह सर्वाधिक सार्वभौम तथ्यों में से एक है। वैज्ञानिक तथ्य तक इतने सार्वभौमिक नहीं होते; यह तथ्य बिना अपवाद का है। जब कहीं, और जहां कहीं किसी देश में, किसी शताब्दी में किसी स्त्री या किसी पुरुष ने अपने भीतर झांक कर देखा है, उनको खजाना मिल गया है। किंतु व्यक्ति को भीतर देखना पड़ता है, और इसके लिए बहुत साहस की आवश्यकता है। तुमने अपने से बाहर अपना संसार व्यवस्थित कर लिया है। तुम्हारा प्रेम, तुम्हारी शक्ति, तुम्हारा धन, तुम्हारा यश, तुम्हारा नाम, सभी कुछ तुमसे बाहर हैं। वह व्यक्ति जो भीतर जाना चाहता है उसको इन चीजों को छोड़ना पड़ेगा, अपनी आंखों को बंद करना पड़ेगा, और व्यक्ति अंत तक इन सभी से चिपकता है। जीवन तुम्हें हताश करता चला जाता है, यह एक आशीष है। जीवन तुमको बार-बार हताश करता चला जाता है; जीवन कह रहा है, भीतर जाओ। सभी हताशाएं बस संकेत हैं कि तुम गलत दिशा में
SR No.034099
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages471
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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