________________ सारा प्रशिक्षण उसे यह नहीं करने दे रहा था, बाद में उस युवक ने मुझसे कहा, मेरा साराप्रशिक्षण नियंत्रित बने रहने का है। अब उस समूह की सहभागी एक युवती ने उसको पीटना आरंभ कर दिया। वह अपने क्रोध को बाहर निकाल रही थी, और वह युवक मूर्तिवत खड़ा रहा, क्योंकि उसका प्रशिक्षण कोई कृत्य भी नहीं करने का है। वह बुद्ध की भांति बना रहा, वास्तव में बुद्ध नहीं, क्योंकि बुद्ध जागरूक होता है, नियंत्रित नहीं। बाहर से तो वे दोनों एक जैसे दिखाई पड़ सकते हैं। वह व्यक्ति जो नियंत्रित है और वह व्यक्ति जो सजग है, एक जैसे दीख सकते हैं, किंतु भीतर गहराई में वे पूर्णत: भिन्न होते हैं। उनकी ऊर्जा गुणवत्ता के स्तर पर पूर्णत: भिन्न होती हैं। वह अपने भीतर और और क्रोधित होता रहा, और साथ ही साथ और नियंत्रित भी होता चला गया, क्योंकि उसका सारा प्रशिक्षण दांव पर लगा था। फिर उसने उस लड़की के ऊपर एक तकिया फेंक दिया, और अकीदो में प्रशिक्षण लेने वाले व्यक्ति के द्वारा फेंका गया तकिया भी खतरनाक हो सकता है। वह तुमको ऐसे कोमल बिंदु पर, इतनी ताकत से आघात पहुंचा सकता है कि तकिए की चोट से मृत्यु तक हो सकती है। अकीदो का पूरा प्रशिक्षण यही है, सीखने में व्यक्ति को बरसों लग जाते हैं, एक छोटा सा आघात यंत कोमल स्थानों पर। जापानियों ने इसको जान लिया है कि कहां पर बहुत आहिस्ते से आघात किया जाए, और व्यक्ति के प्राण निकल जाएं। बस केवल एक अंगुली से वे शत्रु को पराजित कर सकते हैं। उन्होंने आघात करने के लिए नाजुक स्थानों की खोज कर ली है, और साथ ही साथ यह खोज भी की है कि कैसे आघात किया जाए और कब आघात किया जाए। किंतु फिर वह स्वयं ही भयभीत हो गया, भयग्रस्त हुआ कि उसके द्वारा इस प्रकार तकिए के प्रहार से उस युवती की हत्या भी हो सकती थी। वह इतना भयाक्रांत हो गया कि वह इस समूह-चिकित्सा को छोड़ कर भाग गया और वह मेरे पास आया और उसने शिकायत की। वह बोला, आश्रम में इस प्रकार की समूह-चिकित्साओं की अनुमति नहीं होनी चाहिए। अन्यथा किसी दिन कोई किसी की ' हत्या कर सकता है। वह ठीक कह रहा है, क्योंकि वहां उसके भीतर हत्यारा छिपा है। उसका भय उचित है, यह उसके स्वयं के बारे में सही है। वह एक हत्यारा हो सकता है। वास्तव में इस प्रकार के प्रशिक्षण तुम्हें मानव-हंता, योद्धा बनाने के लिए प्रशिक्षण हैं। याद रखो, यदि तुम क्रोध, लोभ और इस प्रकार के मनोभावों पर नियंत्रण करोगे तो वे तुम्हारे अस्तित्व के तलघर में एकत्रित होते चले जाएंगे और तुम एक ज्वालामुखी पर बैठे होगे। योग का दमन से कुछ भी लेना-देना नहीं है। योग का विश्वास जागरूकता में है। 'प्रभाव के कारण पर अवलंबित होने से, कारणों के मिटते ही प्रभाव तिरोहित हो जाते हैं।'