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________________ जब बच्चा मां के गर्भ में होता है तो वह पूर्ण सुप्तावस्था में होता है। मां के गर्भ में आरंभ के महीने गहन निद्रा, जिसे योग सुषुप्ति, स्वप्न विहीन निद्रा कहता है, के होते हैं। फिर लगभग छठे माह के अंत या सातवें माह के आरंभ में बच्चा थोड़े बहुत स्वप्न देखना शुरू कर देता है। निद्रा में बाधा पड़ने लगती है, यह पूर्ण नहीं रह पाती। बाहर कुछ होता हैं-जरा सा शोर और बच्चे की निद्रा बाधित हो जाती है। बाहर उत्पन्न कपन उस तक पहुंच जाते हैं और उसकी गहन निद्रा में विक्षेप उत्पन्न हो जाता है और वह स्वप्न देखना आरंभ कर देता है। स्वप्न की पहली तरंगिकाए उठती हैं। स्वप्न विहीन निद्रा चेतना की पहली अवस्था है। दूसरी अवस्था है : निद्रा और स्वप्न। दूसरी अवस्था में निद्रा बनी रहती है लेकिन एक नया आयाम सक्रिय हो जाता है : स्वप्न देखने का आयाम। फिर बच्चे का जन्म हो जाता है तो एक तीसरे आयाम का उदय होता है, जिसे हम सामान्यत: जागृति की अवस्था कहते हैं। यह वास्तव में जागृति की अवस्था नहीं है बल्कि एक नया आयाम सक्रिय हो जाता है और वह आयाम है विचार का। बच्चा सोचना आरंभ कर देता है। पहली अवस्था स्वप्न रहित निद्रा की थी, दूसरी अवस्था थी निद्रा और स्वप्न, तीसरी अवस्था है निद्रा, और स्वप्न, और विचार, किंतु निद्रा अब भी रहती है। निद्रा पूरी तरह टूट नहीं गई है। तुम अपने सोचने के समय भी निद्रा में बने रहते हो। तुम्हारा सोचना और कुछ नहीं बल्कि स्वप्न देखने का एक और ढंग है, निद्रा बाधित नहीं होती है। ये सामान्य अवस्थाएं हैं। कभी कोई बिरला व्यक्ति ही तीसरी, सोचने की अवस्था से ऊपर उठ पाता है। और योग का लक्ष्य यही है-शुद्ध जागरूकता की अवस्था, जो इतनी शुद्ध है जितनी कि पहली अवस्था पर पहुंचना। पहली अवस्था शुद्ध निद्रा की है और अंतिम अवस्था शुद्ध जागरूकता, शुद्ध जागृति की है। एक बार तुम्हारी जागरूकता उतनी शुद्ध हो जाए जितनी कि तुम्हारी गहन निद्रा है, तुम बुद्ध बन जाते हो, तुमने पा लिया है, तुम घर लौट आए हो। पतंजलि कहते हैं : समाधि जागरूकता की परम अवस्था, बस सुषुप्ति की भांति है; किंतु एक अंतर है। यह उतनी ही शांत और विश्रांत है जैसी कि निद्रा, उतनी ही मौन, निद्रा की भांति बाधाहीन, उतनी ही समग्र और आनंददायी जैसी कि निद्रा होती है, लेकिन एक अंतर के साथ, यह पूरी तरह सजग है। ये विकास के सोपान हैं। सामान्यत: हम तीसरी अवस्था पर रहते हैं। गहराई में निंद्रा जारी रहती है; इसके ऊपर स्वप्नों की परत है, उसके ऊपर विचार प्रक्रिया की एक अन्य परत है निद्रा भंग नहीं हुई है। और तुम इसको देख सकते हो, यह कोई सिद्धांत नहीं है। इसकी वास्तविकता को तुम देख सकते हो। किसी भी क्षण अपनी आंखें बंद कर लो, पहले तम विचारों को देखोगे अपने चारों ओर, विचारों की एक परत, तरंगित विचार-स्व आ रहा है, एक जा रहा है-एक भीड़, एक यातायात। कुछ क्षणों के लिए मौन रहो और अचानक तुम देखोगे कि अब वहां विचार–प्रक्रिया न रही बल्कि स्वप्न देखना
SR No.034099
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages471
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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