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उन रास्तों पर तुम चलते रहे हो, यह रास्ता और वह रास्ता सब पता है। तुम पूरी तरह अचेतन होकर चल-फिर सकते हो।
आनंद को चेतना की आवश्यकता होती है। क्या तुम कभी पहाड़ों पर गए हो? तुम चल रहे हो और बस बगल में ही एक विशाल घाटी फैली हुए है। तुम सजग हो जाते हो। पर्वतारोहण के सौंदर्यों में यह भी एक बात है। वास्तव में यह आनंद पर्वत में नहीं है, आनंद है खतरे में, सतत खतरे में चलना। वहां सदैव मृत्यु चारों ओर है, घाटी तुमको किसी भी क्षण निगल लेने की प्रतीक्षा कर रही है। एक बार तुम्हारे पांव उखड़े, तुम सदा के लिए चले गए। उस खतरे के कारण व्यक्ति बहुत तीक्ष्माता से सजग तलवार जैसा हो जाता है। उस सजगता से आनंद मिलता है।
जब तुम लोगों के साथ संबंधों में रहा करते हो तो तुम सदैव खतरे में हो। जीवन प्रखर हो जाता है। फिर तुम्हारे पास एक जीवनशैली होती है, तब तुम्हारी ऊर्जा बस जक नहीं खाती, यह प्रवाहमान होती है। उन लोगों की ओर देखो जो गुफाओं या आश्रमों में बहुत लंबे समय से रह रहे हैं, तुम देखोगे कि उनके चेहरों पर खास किस्म की जक लग चुकी है। वे जीवंत नहीं दिखाई पड़ेंगे। वे मूढ़ होने की सीमा तक मंदमति होंगे। यही कारण है कि साधुओं ने संसार में कभी किसी सुंदर चीज का निर्माण नहीं किया है। उनके द्वारा कुछ भी निर्मित नहीं हुआ है। वे अपशिष्ट हैं, वे उर्वर भूमि नहीं हैं। वे नपुंसक सिद्ध हुए हैं। सारे पलायन तुम्हें और कायर, नपुंसक बना देते हैं। और जितना तुम भागते हो उतना और तुम भागना चाहते हो। सारा पलायन आत्मघाती है।
फिर मेरा क्या अभिप्राय है? क्या मैं तुमसे यह कह रहा हूं कि कभी अकेले मत रहो? नहीं, जरा भी नहीं। बल्कि मैं कह रहा हूं कि कभी अकेलेपन में मत रहो।
एकांत उस समृद्धि से आता है जिसे तुमने संबंधों के, अनेक संबंधों, अनेक आयामों, अनेक गुणवत्ताओं के माध्यम से सीखा है मां के साथ रह कर, पिता के साथ रह कर, मित्र के साथ रह कर, भाई, बहन के साथ रह कर, पत्नी के साथ, प्रेमिका, प्रेमी के साथ रह कर, मित्रों के, शत्रओं के साथ रह कर सीखा है। साथ रह कर' ही संसार है। और व्यक्ति को जितना संभव हो सके उतने अधिक संबंधों में रह कर देखना पड़ता है, तभी तुम विस्तीर्ण होते हो। प्रत्येक संबंध तुम्हारी आंतरिक समृद्धि में कुछ योगदान करता है। जितना अधिक तुम लोगों के मध्य उनसे संबंधित होकर फैल जाते हो, उतना ही अधिक तुम्हारा विस्तार हो जाता है। तुम्हारे पास एक और बड़ी आत्मा होती है, और तुम्हारे पास एक और समृद्ध आत्मा होती है। वरना तुम दरिद्र हो जाते हो।
अब मनस्विद उन बच्चों पर कठोर श्रम कर रहे हैं, जिनको अपना पहला और आधारभूत संबंध