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________________ बारे में पूछताछ, पुराने ढांचों ग्रे बाहर निकल कर नये ढंग-ढांचे, नये अनुशासन को पाकर, उनके माध्यम से ही तुम विकसित होओगे, तूम समृद्ध होओगे। वास्तव में जिस क्षण तुम विकसित हो जाते हो तत्क्षण सत्य तुम्हारे भीतर दीखता है। व्यक्ति को बस उसको पहचानना भर है, लेकिन यह पहचान कठिन रास्ते से आती है। तुमको हर वह वस्तु जो तुम्हारे पास है दांव पर लगा देनी पड़ती है; चोरी का यही अभिप्राय है। यह कोई व्यवसाय नहीं है; यह कोई मोल-भाव नहीं है। यह चोरी करने जैसा है। चोर के बारे में सोचो, वह उस चीज के लिए जो अज्ञात है, जिसको वह नहीं जानता कि वास्तव में यह वहां है भी या नहीं, सब कुछ दांव पर लगाता है। वह अपनी संपत्ति दांव पर लगाता है, वह अपना परिवार दांव पर लगाता है, वह अपना खुद का जीवन दांव पर लगा देता है। यदि वह चूकता है और कुछ गलत हो जाता है, तो वह सदा के लिए कारागृह में भेजा जा सकता है। वह एक जुआरी है, बेहद हिम्मतवर। वह कोई व्यवसायी नहीं हुऐ। वह उस वस्तु के लिए जो वहां हो सकती है और नहीं भी हो सकती है, सभी कुछ दांव पर लगा देता है। व्यवसायी के पास एक ध्येय वाक्य होता है, वह कहता है, कभी अपने हाथ की आधी रोटी को भविष्य की कल्पना की पूरी रोटी की खातिर खो मत देना। कभी भी उसके लिए जो तुम्हारे पास नहीं है, इसको खो मत देना जो तुम्हारे पास है। यह व्यवसायी का ध्येय वाक्य, व्यवसायी का मन है। चोर पूर्णत: दूसरे ध्येय वाक्य का अनुसरण करता है; वह कहता है, उस वस्तु की खातिर जो तुम्हारे पास नहीं है, उस सभी कुछ को जो तुम्हारे पास है, दांव पर लगा दो। अपने स्वप्न के लिए वह अपना यथार्थ दाव पर लगाता है। यह बस एक 'शायद' है। वह अपनी सारी सुरक्षाओं. को, किसी ऐसी वस्तु के लिए जो अत्यंत असुरक्षित है, खतरे में डालता है। यही है जहां साहस की आवश्यकता है। इसलिए व्यवसायी बनने की अपेक्षा चोर बनो, जआरी बनो। क्योंकि अज्ञात को केवल तभी पाया जा सकता है जब तुम ज्ञात को त्यागने को राजी हो। जब ज्ञात विलीन हो जाता है, अतात तुम्हारे अस्तित्व में प्रविष्ट हो जाता है। जब सारी सुरक्षा खो जाती है, केवल तभी तुम अज्ञात को अपने भीतर प्रवेश करने का रास्ता देते हो। दूसरा प्रश्न: क्या व्यक्ति जीवन का आनंद अकेले नहीं ले सकता है? क्योंकि मैं उतना बोधपूर्ण नहीं हूं कि बिना गीले हुए, पानी में उतर जाना या बिना जले हुए आग में से गुजर जाना मेरे लिए संभव हो सको क्या व्यक्ति अकेले जीवन का आनंद नहीं ले सकता है?
SR No.034099
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages471
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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