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प्रवचन 92 - एकांत अंतिम उपलब्धि है
प्रश्नसारः
1-क्या शिष्य अपने सदगुरु से कुछ चुराता है?
2-क्या व्यक्ति जीवन का आनंद अकेले नहीं ले सकता है?
3-जीवन क्या है? काम-भोग में संलग्न होना, धन कमाना, सांसारिक इच्छाओं की पूर्ति करना, व्यक्ति को दूसरों पर निर्भर होना, और क्या यह सब खोजी की खोज को बहुत लंबा नहीं बना देगा?
4-क्या कोई शिष्य हए बिना आपकी आत्मा से अंतरंग हो सकता है?
पहला प्रश्न: क्या सदगुरू कुछ चुराता है?
सभी कुछ! क्योंकि सत्य को सिखाया नहीं जा सकता, इसे सीखना पड़ता है। सदगुरु तुम्हें केवल
प्रलोभित करता है, तुम्हें इसके लिए और-और प्यासा बना सकता है, लेकिन सत्य तुम्हें दे नहीं सकता-यह कोई वस्तु नहीं है। वह इसे सरलता से तुम्हारे नाम हस्तांतरित नहीं कर सकता यह कोई विरासत नहीं है। तुम्हें इसको चुराना पड़ेगा। तुम्हें आत्मा की अंधेरी रात में कठिन परिश्रम करना पड़ेगा। इसे किस प्रकार से चुराया जाए इसके उपाय तुम्हें खोजने पड़ेंगे। सदगुरु केवल तुम्हें प्रलोभित करता है, वह बस तुम्हें उकसाता है। वह दिखाता है कि वहां कुछ है, एक खजाना-और अब तुमको कठोर परिश्रम करना पड़ेगा। वास्तव में' तो वह हर प्रकार के अवरोध निर्मित करेगा ताकि तुम खजाने तक बहुत आसानी से न पहुंच सको। क्योंकि यदि तुम खजाने तक बहुत सरलता से पहुंच गए, तो तुम विकसित नहीं हुए; तुम उस खजाने को पुन: खो दोगे। यह बच्चे के हाथ में खजाना देने जैसा है। कुंजी खो जाएगी, खजाना खो जाएगा।