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डीलन थॉमस की एक बहुत प्रसिद्ध कविता है। उसके पिता का देहांत हो गया और उसी रात उसने यह कविता लिखी। इस कविता में ये पंक्तियां आती हैं
क्रोध
प्रकाश के अवसान
के विरुद्ध,
क्रोध;
उस शुभ रात्रि में
जाएं मत
कोमलता से,
बिना विरोध!
वह अपने पिता से कह रहा है : 'मृत्यु से संघर्ष करें, इसके विरुद्ध क्रोध करें समर्पण न करें, बस ऐसे ही मत छोड़े। उसे कड़ी चुनौती दें, भले ही आप उससे पराजित हो जाएं, लेकिन बिना संघर्ष किए न जाएं।'
यदि प्रेम परितृप्त नहीं है तो व्यक्ति क्रोधित हो जाता है। यदि जीवन परितृप्त नहीं है तो व्यक्ति मृत्यु पर क्रोधित हो जाता है। ऐसा व्यक्ति जिसका जीवन परितृप्त है वह मृत्यु पर क्रोधित नहीं होगा, वह उसका स्वागत करेगा। और वह ऐसा नहीं कहेगा कि यह अंधेरी रात है; वह कहेगा, कितनी संदर, कितनी विश्रामदायी। अंधकार विश्रामदायक है। यह करीब-करीब मां के गर्भ की भांति उष्ण है। व्यक्ति पुन: परमात्मा के वृहत्तर गर्भ में जा रहा है। क्रोध किसलिए? वे जो खिल चुके हैं, समर्पण कर देते हैं। वे जो हताश हैं समर्पण नहीं कर सकते। अपनी हताशाओं में से वे और अधिक आशाएं निर्मित करते हैं और प्रत्येक आशा और अधिक हताशाएं उत्पन्न करती है और यह दुष्चक्र चलता चला जाता है, अनंत तक।
यदि तुम हताश नहीं होना चाहते हो तो आशा छोड़ दो-तब कोई हताशा नहीं रहेगी। और यदि तुम वास्तव में विकसित होना चाहते हो तो दमन कभी न करो। ऊर्जा का आनंद लो। जीवन ऊर्जा की एक घटना है। ऊर्जा का आनंद लो-नाचो, गाओ, तैसे, दौड़ो, ऊर्जा को अपने ऊपर सभी ओर बहने दो, ऊर्जा को अपने ऊपर सभी तरफ फैल जाने दो। इसे प्रवाह बन जाने दो। एक बार तुम प्रवाह में आ जाओ तो खिलना बहुत सरल हो जाता है।