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हां, इसको औषधियों से प्राप्त किया जा सकता है, लेकिन यह उसकी निम्नतम झलक है। रसायनों के माध्यम से तुम्हें एक खास तरह की झलक मिल सकती है, किंतु यह करीब-करीब एक हिंसा, परमात्मा के साथ लगभग बलात्कार हैं-क्योंकि तुम झलक में विकसित नहीं हो रहे हो बल्कि तुम उस झलक को अपने ऊपर थोप देते रहे हो। तुम एल एस डी या मारिजुआना या कुछ और ले सकते हो, तुम अपने दैहिक रसायन तंत्र के साथ जबदरस्ती कुछ कर रहे हो। यदि दैहिक रसायन तंत्र के साथ बहत अधिक जबरदस्ती की जाए, तो बस कुछ पलों के लिए यह मन के प्रतिबंध से मक्त हो जाता है। तम्हारे जीवन की सुरंग जैसी जीवनशैली से यह छट जाता है। तम्हें एक विशेष प्रकार की झलक मिलती है, लेकिन यह झलक एक बहुत बड़ी कीमत चुका कर मिलती है। अब तुम उस औषधि से आसक्त हो जाओगे। जब कभी भी तुम्हें झलक की आवश्यकता होगी तुम उसी औषधि की ओर जाने के लिए बाध्य हो जाओगे, और जितनी बार तुम उस औषधि का सेवन करोगे, हर बार तुम्हें इसकी और अधिक मात्रा की जरूरत पड़ेगी। और तम्हारा जरा सा भी विकास नहीं हो रहा होगा, कोई भी परिपक्वता तुममें नहीं आ रही होगी। केवल औषधि की मात्रा बढ़ेगी और तुम वही के वही रहोगे। यह दिव्यता की झलक पाने के लिए बहुत महंगा सौदा है। इसका मूल्य इतना नहीं है। यह अपने
आप को विनष्ट करना हुआ। यह आत्मघाती है, लेकिन पतंजलि इसे एक संभावना के रूप में रखते हैं। बहुत लोगों ने इसकी कोशिश की है, और बहुत से लोग इसके द्वारा करीब-करीब पागल हो गए हैं। अस्तित्व के साथ किसी भी प्रकार की हिंसा खतरनाक है। व्यक्ति को स्वाभाविक रूप से विकसित होना चाहिए। अधिक से अधिक यह स्वप्न जैसा हो सकता है लेकिन यह वास्तविकता नहीं हो सकता। एक व्यक्ति जो लंबे समय से एल एस डी ले रहा है वैसा ही आदमी रहता है। वह उन नये
के बारे में बात कर सकता है जो उसने प्राप्त किए हैं और वह स्वप्निल अनभवों के बारे में बात करेगा, लेकिन तुम देख सकते हो कि वह आदमी वैसा का वैसा ही है। वह बदला नहीं है। उसे कोई गरिमा उपलब्ध नहीं हो गई है। इससे भिन्न भी हो सकता है, जो गरिमा पहले से ही उसके पास थी वह भी खो सकती है। वह और अधिक प्रसन्न और आनंदित नहीं हो गया है। ही, औषधि के प्रभाव में वह हंस सकता है किंतु वह हंसी भी रुग्ण है, यह स्वाभाविक रूप से नहीं उठ रही है, यह सहजता से नहीं खिल रही है। और औषधि का प्रभाव मिटते ही वह मंदमति हो जाएगा, उसके मन में सुखाभास की स्मृतियां होंगी। और वह बार-बार खोजेगा, बार-बार वह उसी झलक की खोज और अन्वेषण करेगा। अब वह औषधि के अनुभव से सम्मोहित हो जाएगा। यह निम्नतम संभावना है।
दूसरा उससे बेहतर है वह है मंत्र। यदि तुम एक खास मंत्र को लंबे समय तक दोहराते रहो, तो यह तुम्हारे अस्तित्व में सूक्ष्म रासायनिक परिवर्तन निर्मित कर देता है। यह औषधियों से बेहतर है, लेकिन फिर भी यह भी एक प्रकार की औषधि ही है। यदि तुम लगातार ओम, ओम, ओम दोहराते रहो, तो वह पुनरुक्ति तुम्हारे भीतर ध्वनि तरंगें निर्मित करती है। यह 'ऐसा ही है कि तुम झील में पत्थर फेंकते चले जाओ और तरंगें उठती रहें, उठती चली जाएं और अनेक आकृतियां बनाते हुए फैलती चली जाएं।