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________________ कैसे फेंका जाए, तुम्हें तुम्हारी आशाओं में कैसे हताश किया जाए, निःसंदेह इसे बड़ी कुशलता से करना पड़ता है। यही तो कर रहा हूं मैं यहां। यदि तुम्हारे भीतर कोई आशाएं न हों, तो पहले मैं उनको निर्मित करता हूं। मैं तुम्हें उम्मीद बंधा देता हूं। मैं कहता हूं 'ही, शीघ्र ही कुछ घटित होने को है' -क्योंकि मुझे पता है कि इच्छा तो है लेकिन वह पूर्णत: स्पष्ट नहीं है। यह वहां बीज-रूप में छिपी हुई है, इसे अंकुरित होना पड़ेगा, इसे पुष्पित होना पड़ेगा। और जब इच्छा पुष्पित होती है तो वे फूल हताशा के होते हैं। फिर अचानक तुम सारी मूढ़ता, सारे चक्कर को छोड़ देते हो। और एक बार तुम प्रमाणिक रूप से हताश हो जाओ-और जब मैं कहता हूं प्रमाणिक रूप से हताश, वास्तविक रूप से निराश, तो मेरा अभिप्राय यह है कि अब तुम पुन: कोई आशा नहीं करते, तुम तो बस इस हताशा को स्वीकार कर लेते हो और घर वापस लौट आते हो-तुम हंसने लगोगे। और यह सदा से तुम्हारे भीतर था लेकिन तुम खोज में बहुत अधिक उलझे हुए थे। 'दि किंग ऑफ हार्टस' नाम की एक बहुत सुंदर फिल्म है। यह प्रथम विश्वयुद्ध की पृष्ठभूइम पर बनी है, एक फ्रांसीसी नगर पर कब्जा जमाने के लिए जर्मन और अंग्रेज युदधरत हैं। जर्मन सैनिक नगर में एक टाइम बम लगा देते हैं और नगर छोड़ कर चले जाते हैं, और जैसे ही फ्रांसीसियों को बम के बारे में जानकारी होती है, वे भी नगर छोड़ देते हैं। पागलखाने से -सारे पागल बाहर निकल आते हैं और खाली पड़े नगर पर कब्जा कर लेते हैं, उनका समय बहुत अच्छा बीतने लगता है क्योंकि वहां कोई बचा ही नहीं है, केवल पागलखाने के पागल ही रह गए हैं। उनके पहरेदार तक भाग चुके हैं, इसलिए अब वे आजाद हैं। वे नगर में आ जाते हैं और वहा सब कुछ खाली पड़ा है-दुकानें खाली हैं, सारे कार्यालय खाली हैं। इसलिए वे नगर पर अधिकार कर लेते हैं, वे खाली हो गए नगर पर कब्जा जमा लेते हैं और वे अपना समय अदभुत ढंग से बिताते हैं। वे सभी लोग भिन्न-भिन्न तरह के वस्त्र धारण कर लेते हैं और पूर्णत: आनंदित हैं। उनका पागलपन बस खो जाता है, और अब वे पागल नहीं रहते। सदा से वे जो कुछ भी बनना चाहते थे और न बन सके, अब वे लोग बिना किसी प्रयास के वही सब बन जाते हैं। कोई व्यक्ति जनरल बन जाता है, कोई व्यक्ति ड्यूक बन जाता है और कोई महिला मैडम बन जाती है और दूसरे कुछ लोग डाक्टर, बिशप या जो कुछ भी वे बनना चाहते हैं बन जाते हैं। वहां पर हर बात की स्वतंत्रता है। वे भिन्नभिन्न तरह के कपड़े पहन लेते हैं, और अपने आप में पूरी तरह आनंदित होते हैं। प्रत्येक व्यक्ति नगर में कोई न कोई भूमिका ले लेता है : जनरल, ड्यूक, लेडी, मैडम, बिशप आदि। एक आदमी नाई बन जाता है और वह ग्राहकों से कुछ लेने के बजाय भुगतान करता है, क्योंकि उसे नाई होने में आनंद आ रहा है, और इस प्रकार उसके पास और अधिक ग्राहक आने लगते हैं।
SR No.034099
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages471
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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