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कहिए भई नेताजी, दूसरे भूत ने कहा, मैं तो कहता हं-बड़ी भीड़ है,क्या बात है आपकी?
ही, पहले भूत ने कहा, यदि मुझे मालूम होता कि मैं इतनी बड़ी भीड़ जमा कर सकता हूं तो मैं कभी का मर चुका होता।
राजनेता की इच्छा बेहद बचकानी इच्छा होती है, दूसरों की आंखों में श्रेष्ठ और महान दीखना। सरल है इसे उपलब्ध करना, क्योंकि भीड़ तो बस पागल है। तमको बस इतना मालुम होना चाहिए कि उनके पागलपन को कैसे इस्तेमाल किया जाए। तुमको तो सिर्फ यह मालूम होना चाहिए कि उसकी प्रशंसा को कैसे उकसाया जाए। तुमको बस जरा सा चालाक होना पड़ता है। बस यही सब कुछ है, किसी और चीज की जरूरत ही नहीं है। भीड़ें तो मूढ़ हैं।
लेकिन वास्तव में महान बन पाना पूर्णत: अलग बात है। वास्तविक रूप से श्रेष्ठ बनने के लिए व्यक्ति को भीतर जाना पड़ता है। व्यक्ति को सजग, इच्छा शून्य, अनासक्त, संकेंद्रित होना पड़ता है, व्यक्ति को परा, अतिक्रमण के पार के बिंदु पर पहुंचना पड़ता है। इसका दूसरों से कुछ भी लेना-देना नहीं है। दूसरे भी करीब-करीब उतने ही विक्षिप्त हैं जितने कि तुम हो। उनको तुम इस्तेमाल कर सकते हो, तुम अपने लिए उनकी तालियों को और उनकी प्रशंसा को उकसा सकते हो, लेकिन इसमें क्या सार है? जरा इस ढंग से सोच कर तो देखो, थोड़ा अंक-गणित तोलगाओ। यदि एक मूर्ख तुम्हारी प्रशंसा में अपने हाथों से ताली बजाता है, क्या इससे तुम महिमावान हो जाओगे? तुम नहीं होओगे। लेकिन एक मूर्ख, एक हजार मूर्ख या दस लाख मूों की ताली में क्या अंतर है?
यदि कोई समझदार व्य म्हारी ओर प्रेम और आशीष से वार कर देखता है, तो यह पर्याप्त है। एक चिड़ियाघर से दो शेर एक हो दिन भाग गए। आजाद घूमते रहने के तीन सप्ताह बाद उनकी एक-दूसरे से मुलाकात हुई। उनमें से एक शेर दुबला और कमजोर था, जब कि दूसरा तगड़ा-मोटा और निःसंदेह खाया-पीया दीख रहा था।
मैं चिड़ियाघर में वापस लौटने की सोच रहा हं कमजोर वाले शेर ने कहा, पिछले पंद्रह दिनों से तो मैंने कुछ भी नहीं खाया है।
बेहतर यह रहेगा कि तुम मेरे साथ चलो, मोटे शेर ने कहा, मैं संसद भवन में एक सज्जन के घर में रहता हूं। मैं सप्ताह के हर दिन एक नेता को खा लेता हूं और मजा यह है कि कोई उनका गम भी नहीं मनाता।
तुम्हारे तथाकथित महत्वपूर्ण लोग, कौन उनका अफसोस करता है? वे सोचते हैं कि उनके बिना सारा संसार मिट जाने वाला है। मिटता कुछ भी नहीं है, सब कुछ जैसे चलता था वैसे ही चलता रहता है।
इसकी चिंता मत लो कि तुमसे महत्वाकांक्षा की रेलगाड़ी छूट गई है। यह पकड़ने योग्य थी भी नहीं। यदि तुमने इसे पकड़ लिया होता तो तुमने बहुत निराशा अनुभव की होती और तुमने पश्चात्ताप किया