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________________ क्योंकि गहरी श्वास काम के आंतरिक केंद्र की मालिश करती रहती है। यदि तुम वास्तव में ढंग से श्वास लो तो तुम कामुक अनुभव करोगे। तुमको श्वसन प्रक्रिया का दमन करना पड़ेगा, तुम गहराई से श्वास नहीं ले सकते, यदि तुम काम का दमन करते हो, तो तुम्हें अपने भोजन में से कई चीजों का दमन करना पड़ेगा, क्योंकि ऐसे कई भोज्य पदार्थ हैं जो तुम्हें अन्य की तुलना में अधिक काम-ऊर्जा प्रदान करते हैं। फिर तुमको अपना भोजन बदलना पड़ जाएगा। यदि तुम काम का दमन करते हो तो तुम ठीक से सो नहीं सकते, क्योंकि यदि तुम ढंग से सो जाओ और तुम पूरी तरह विश्रांत हो जाओ तो तुम्हें कामुक स्वप्न आएंगे, निद्रा में तुम्हारा स्खलन हो सकता है, इसका भय वहां रहेगा। तुम भलीभांति सो पाने में समर्थ न हो पाओगे। अब तुम्हारा सारा जीवन एक जटिलता, एक ग्रंथि, एक घबड़ाहट बन जाएगा। तुम काम का दमन कर सकते हो, लेकिन फिर तुम्हें बेहद, बहुत तनावग्रस्त, करीब-करीब पागलों जैसा तनावग्रस्त रहना पड़ेगा। यही है जिसे होना चाहिए. 'लेकिन मेरे मन में तनाव रहा करते थे। आपकी छत्रछाया में आकर तनाव खो चुके हैं...' बहुत शुभ हुआ यह। निःसंदेह जब तनाव विसर्जित होते हैं, तो उन तनावों के द्वारा तुमने जिस काम को दबा कर रखा हुआ था, उभर आएगा, पुन: उठ खड़ा होगा। '....किंतु काम की एक नई समस्या उठ खड़ी हुई है।' इसे समस्या मत कहो। इसे बस ऐसे कहो अब काम-ऊर्जा पुन: प्रवाहित हो रही है। अब तुम्हारी काम-ऊर्जा कोई ठोस वस्तु न रही, यह तरल और प्रवाहमान हो गई है। अब तुम्हारा काम पुन: जीवंत हो गया है, यह पंगु और मृत नहीं रहा। तुम पुन: युवा हो गए हो। मेरा सारा प्रयास है तुम्हें उन शिक्षकों से जिनके साथ तुम रहे हो, उन शास्त्रों से जिनको तुम पढ़ते रहे हो, और उन सारी मूढ़ताओं से जिनमें तुम रहा करते थे, कैसे मुक्त किया जाए-तुम्हें निर्भार कैसे करूं। मेरा नब्बे प्रतिशत कार्य इसी कारण है कि तुमने कुछ गलत सीख रखा है अब तुमको इसे अनसीखा करना पड़ेगा। अब पुन: यदि तुम इसे समस्या कहते हो, तो यह तुम नहीं हो। तुम्हारे तथाकथित शिक्षक की आवाज तुम्हारे माध्यम से कार्य कर रही है; वह तुम्हारे हृदय के सिंहासन पर बैठा है और कह रहा है, देखो। यह समस्या पुन: उठ रही है। इसको रोक दो। दमन करो इसका। तुम्हें इस आवाज के प्रति उदासीन होना पड़ेगा। यदि तुम मेरे साथ रहना चाहते हो, तुम्हें जीवंत होना पड़ेगा-इतना जीवंत कि इससे बाहर कुछ भी न हो, सब कुछ इसमें समाहित हो जाए। यही कार्य का आरंभ है। यदि तुम विश्रांत हो सकते हो, तुम परमात्मा तक पहुंच सकते हो। परमात्मा तक पहुंचना कोई प्रयास नहीं है। यह है प्रयास रहित विश्रांति, लेट गो।
SR No.034099
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages471
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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