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विश्रांत होता है। वह व्यक्ति जिसके भीतर दमन है विश्रांत नहीं हो सकता है, क्योंकि विश्रांति उसके दमनों के विरोध में चली जाएगी। इस प्रक्रिया को समझने का प्रयास करो।
जब तुम किसी बात का दमन करते हो, तुमको सतत रूप से चौकन्ने रहना पड़ता है, तुम लगातार दमन करते रहते हो। दमन कोई ऐसा कृत्य नहीं है कि तुमने इसे एक बार कर लिया और काम खत्म। इसे तुम्हारे जीवन के हर पल करना पड़ता है। यदि तुम ऐसा न करो तो वे चीजें जिनका तुमने दमन किया था सतह पर आ जाएंगी। तुमको लगातार उनकी छाती पर सवार होकर उनको वहीं पकड़ कर रखना पड़ता है। यदि तुम उनको एक क्षण के लिए भी छोड़ दो तो शत्रु फिर उठ खड़ा होगा और फिर वही संघर्ष और फिर वही द्वंद्व होगा।
इसीलिए तुम्हारे साधु-महात्मा कोई अवकाश नहीं ले सकते। असंभव। तुम अवकाश कैसे ले
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सकते हो, क्योंकि अवकाश हर मामले को गड़बड़ कर देगा। तुम्हारे संतों को लगातार चौकसी पर रहना पड़ता है। यही तनाव है। सतत सतर्कता। कोई स्त्री आ रही है अपनी ऊर्जा को लगातार संकुचित करते रहो; इसे वहां रोक कर रखो। स्त्री को निकल जाने दो। लेकिन वे लगातार वहां से होकर गुजर रही हैं या यदि वे नहीं गुजर रही हैं, तो यह कुछ और है, और अन्य कोई है सारा जीवन कामुक है।
यदि तुम किसी प्रकार से स्त्रियों से बच जाओ और हिमालय भाग जाओ, वहां पक्षी एक-दूसरे से प्रेमालाप कर रहे होंगे। क्या करोगे तुम? पशु आएंगे और तुम्हें बाधा देंगे। सारा जीवन कामुक है; तुम कहीं भाग नहीं सकते। सारा महासागर काम ऊर्जा का है।
और इसमें गलत कुछ भी नहीं है; यह सुंदर ढंग से ऐसा है।
परमात्मा इस विश्व में काम की अ [ति निरूपित हुआ है। यदि तुम प्राचीन शास्त्रों में विशेषतः हिंदू शास्त्रों में खोजो-तो तुम्हें यही मिलेगा। परमात्मा ने संसार क्यों रचा? हिंदू शास्त्रों का कहना है, क्योंकि उसमें अभिलाषा उत्पन्न हो गई उसमें काम उपजा उसने संसार की रचना की। सारी सृष्टि काम-ऊर्जा, इच्छा–काम से जन्मी है। लेकिन हिंदू एक अर्थ में बहुत हिम्मतवर रहे हैं। वे कहते हैं, परमात्मा ने संसार रचा, फिर उसने वृक्षों, पशुओं को बनाना आरंभ किया। उसने इतने अधिक वृक्षों को कैसे बनाया? उसने इतने सारे पशुओं को कैसे बनाया? उसकी योजना कार्य प्रणाली क्या थी? इतने जटिल संसार पर कार्य करना उसने किस भांति शुरू किया? हिंदू कहते हैं, यह बहुत सरल है। सर्वप्रथम उसने गाय को बनाया........हिंदू गाय को प्रेम करते हैं, इसलिए निःसंदेह परमात्मा को पहले गाय की रचना ही करनी पड़ी। और गाय बहुत दिव्य, बहुत शांत, बहुत सुंदर दिख रही थी। उसने गाय को रचा, और तब वह उस गाय के प्रेम में पड़ गया। कोई दूसरा धर्म इतना साहसी नहीं है - पिता पुत्री के प्रेम में पड़ रहा है। गाय उसकी पुत्री है, उसने इसे बनाया है। अब वह प्रेम में पड़ गया है; तो क्या किया जाए? वह स्वयं ही काफी उलझन में था। इसलिए वह बैल बन गया, क्योंकि गाय से प्रेम करने का