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आशा है कि तुम इस बात को समझ सकते हो। यदि एक अंधेरी रात में तुम अकेले चल रहे हो, तुम अधिक चौकन्ने होकर, अधिक सावधानी से चलते हो। यदि तुम दिन के पूर्ण प्रकाश में एक राजमार्ग पर चल रहे हो, तो निःसंदेह किसी जागरूकता और बोध की जरूरत नहीं पड़ती है।
क्या कभी तुम. किसी भुतहा मकान में रात में अकेले रुके हो? तुम सो ही न पाओगे। आयन में पेडू से सूखा पत्ता गिरने की हलकी सी आवाज, बस और तुम उछल पड़ोगे। कोई बिल्ली चूहे पर झपटती है और तुम कूद पड़ोगे। जरा सा हवा का झोंका और तुम हाथ में टार्च लेकर खड़े हो जाते हो।
मैंने एक आदमी के बारे में सुना है, जिसने एक चुनौती स्वीकार की और भुतहा घर में रुक गया। उसी समय जब वह विश्राम करने जा रहा था बिस्तर पर बैठे हुए उसने वेटर से जो उसके लिए दूध लेकर आया था, पूछा मुझे एक बात बताओ, क्या पिछले कुछ सालों में यहां कुछ अप्रत्याशित घटा है? उस वेटर ने कहा पिछले बीस साल से तो नहीं।
उस व्यक्ति ने राहत महसूस की-बीस साल पहले कुछ हुआ होगा। फिर वेटर जाने लगा। उसने कहा : ठहरो! जरा मुझे बताओ, बीस साल पहले क्या हुआ था?
वेटर ने कहा. बीस साल पहले एक बहुत अप्रत्याशित घटना घटी। एक व्यक्ति इसी पलंग पर सोया था, जिस पर आप बैठे हैं, और अगली सुबह वह नाश्ता करने नीचे उतरा। दुबारा कभी ऐसा नहीं हुआ, और इससे पहले भी कभी नहीं हुआ था। हम लोग तो उसका इंतजार भी नहीं कर रहे थे, लेकिन वह सीढ़ियों से उतरता हुआ नीचे आया।
अब क्या तुम इस व्यक्ति के चौकन्ने न रहने के बारे में सोच सकते हो? क्या तुम सोच सकते हो कि इस- आदमी को नींद आई होगी? नींद की गोलियों से भी काम न चलेगा। यदि तुम उसको मारफिया का इंजेक्शन दे दो तो वह भी कार्य न करेगा। उसकी जागृति एक बहुत घनीभूत चीज बन जाएगी।
बुद्ध अपने शिष्यों को सारी रात मरघट में रुकने के लिए भेजा करते थे-बस और जागरूक होने के लिए। क्योंकि जब तुम मरघट में अकेले हो, तुम सो नहीं सकते। वास्तव में जागरूक होने के लिए कोई प्रयास करने की जरूरत ही नहीं है। जागरूकता आसान हो जाती है। यह वास्तव में भी कभी-कभी ऐसी कोशिश करना चाहिए।
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स्पष्टता को तुम्हारे पास तुम्हारी चेतना की आंतरिक गुणवत्ता में आना पड़ेगा, 'कैसे? क्यों? किसलिए?कुछ भी स्पष्ट नहीं है।' यह आत्यंतिक सुंदर बात है, इसको इसी भांति होना चाहिए।
और मैं तुमसे एक बात और कहना चाहता हूं जीवन स्वयं के लिए है। इसका कोई बाह्य मूल्य नहीं है, आंतरिक है यह। जीवन का उद्देश्य कभी मत पूछो, क्योंकि तुमने गलत प्रश्न पूछा है, तुम असंगत प्रश्न पूछते हो। जीवन परम है, उससे परे कुछ भी नहीं है। जीवन स्वयं के लिए जीता है।