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विकल्प की आवश्यकता है, विपरीत को तुम्हें आकर्षित और अमित करना चाहिए। चुनाव का जन्म ही तब होता है। तुमको और अधिक संवेदनशील और जीवंत और जागरूक होना पड़ता है। लेकिन यदि सब कुछ पूर्व निश्चित हो और हर बात पहले से ही जानी जा सकती हो, तब जागरूक होने में क्या सार रहा? तुम जागरूक हो या नहीं इसका कोई अंतर नहीं पड़ेगा। जब कि अभी यहां इससे बहुत अधिक अंतर हो जाता है।
मैं तुमसे कहना चाहता हूं कि तुम जितना अधिक होशपूर्ण होते जाते हो उतना ही तुम्हारे बारे में भविष्यवाणी कम होती जाती है, क्योंकि तुम पदार्थ, जिसके बारे में पहले से ही बताया जा सकता है, से ऊपर और ऊपर तथा दूर और दूर होते जाते हो। हम जानते हैं कि यदि तुम पानी को उष्णता के एक निश्चित तापमान तक गर्म करो तो पानी भाप बन जाता है। यह पहले से बताया जा सकता है। किंतु मनुष्य के साथ यही बात नहीं है। तुम अपमान का कोई माप तय नहीं कर सकते जहां मनुष्य क्रोधित हो जाता है। हर व्यक्ति कितना अनूठा है। एक बुद्ध कभी भी क्रोधित नहीं हो सकते, भले ही तुम किसी सीमा तक अपमान करो।
और यह बात तुम्हें पता है, कभी-कभी तुम जरा से उकसाने पर क्रोधित हो सकते हो, या कभी किसी के उकसाए बिना ही गुस्से से खौलने लगते हो बिना किसी उष्णता के, और कभी बहुत अधिक उकसाए जाने पर भी तुम उत्तेजित नहीं हो पाते हो। यह इस पर निर्भर करता है कि उस क्षण में तुम कितना अच्छापन अनुभव कर रहे थे, उस क्षण तुम कितना बोधपूर्ण अनुभव कर रहे थे।
भिखारी प्रातःकाल भीख मांगने आते हैं, संध्या को नहीं आते क्योंकि वे मनोविज्ञान की एक सरल बात समझ चुके हैं कि प्रातःकाल लोगों में बांटने की भाव-दशा अधिक होती है-वे अधिक जीवंत होशपूर्ण, विश्रांत होते हैं। संध्या तक वे थके और शक्तिहीन और संसार से ऊब चुके होते हैं, उनसे कुछ पाने की आशा रखना असंभव है। जब लोगों को अपने में अच्छी अनुभूति हो रही हो तभी वे बांटते हैं। यह उनकी आंतरिक अनुभूति पर निर्भर है।
स्मरण रखो कि जीवन सुंदर है क्योंकि तुम और और जीवंत होने में समर्थ हो। कल की चिंता करने की जरूरत नहीं है। आज जीयो। और आने वाले कल को अपना आज मत नष्ट करने दो। और आज इतना मुक्त होकर चलो कि आने वाला कल तुम्हारे लिए और स्वतंत्रता लेकर आए।
कभी भविष्य कथन की बात मत पूछो। खुले रहो। जो कुछ घटता है इसे घटित होने दो, इससे होकर निकल जाओ। यह परमात्मा की भेंट है। इसमें कोई गहरा अर्थ अवश्य होना चाहिए।
'जीवन के आने वाले दिन, यदि कोई हों तो, कितने अज्ञात और अनिश्चित हैं? इन दिनों मेरे भीतर एक गहरी अनुभूति उठ रही है कि व्यक्ति को जीवन के शेष वर्षों में बस जीते रहना है।...'