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________________ तुम सोचते हो, हां, वह एक स्त्री है या एक पुरुष है। एक वृक्ष को तुम देखते हो और तुम इसको पहचान लेते हो-यह चीड़ का वृक्ष है, क्योंकि तुम इसके बारे में जानते हो। एक व्यक्ति को तुम देखते हो और उसके स्टेथस्कोप के कारण तुम यह जान लेते हो कि वह चिकित्सक है। लेकिन चीजों के ये बाह्य संकेत हैं। वह चिकित्सक नहीं हो सकता है, वह कोई छदय वेशधारी भी हो सकता है। और चीड़ का वृक्ष चीड़ का वृक्ष नहीं हो सकता है, वह चीड़ के वृक्ष जैसा दिखाई पड़ सकता है। और वह स्त्री स्त्री नहीं हो सकती है, हो सकता है कि वह अभिनय कर रही हो; वह पुरुष भी हो सकती है, वह 'शी' के स्थान पर 'ही' भी हो सकती है। तुम इसके बारे में पूर्णत: निश्चित नहीं हो सकते, क्योंकि तुम उसे केवल बाहर से ही जानते हो। जब समय खो जाता है और शाश्वत तुम्हें चारों ओर से घेर लेता है, जब समय एक प्रक्रिया नहीं रह जाता बल्कि ऊर्जा का एक कुंड, सनातन, अभी हो जाता है, तब तुम वस्तुओं के भीतर प्रवेश करने और बाहर की परिभाषाओं के बिना ज्ञान में समर्थ हो जाते हो। यही है जो सदगुरु और शिष्य के मध्य घटित होता है। उसे वास्तव में तुमसे पूछने की आवश्यकता नहीं है। वह तुम्हारे परम अस्तित्व से झांक सकता है। तुम्हारे भीतर वह खड़ा हो सकता है-न सिर्फ तुम्हारी आपाद मस्तक देह में, बल्कि तुम्हारे अस्तित्व के भीतर। वह तुम्हारे अंतर्तम शून्य में पूरी तरह समा जाता है। वह तुम बन सकता है और वहां से देख सकता है। 'यथार्थ के बोध से उत्पन्न उच्चतम ज्ञान, सारी वस्तुओं और प्रक्रियाओं के भूत, भविष्य और वर्तमान से संबंधित समस्त विषयों की तत्क्षण पहचान के परे है, और यह वैश्विक प्रक्रिया का अतिक्रमण कर लेता है।' और प्रक्रिया के संसार का अतिक्रमण कर लेता है, और सभी प्रक्रियाओं के संसार का अतिक्रमण कर लेता है। तारक सर्व विषय सर्वथाविषयमक्रम चेति विवेकजं शानम्। आंखों के माध्यम से हम वास्तविकता का केवल एक भाग ही देख सकते हैं। उस भाग के कारण जीवन एक प्रक्रिया जैसा प्रतीत होता है। उदाहरण के लिए, तुम सड़क के किनारे लगे हुए एक वृक्ष के नीचे बैठे हो और सड़क सुनसान है और तभी अचानक एक व्यक्ति बाईं तरफ से सड़क पर प्रकट होता है, वह दाईं दिशा में चला जाता है; कुछ दूरी चलने के बाद पुन: वह निगाह से ओझल हो जाता है। एक व्यक्ति है जो वृक्ष के ऊपर चढ़ा बैठा है; इससे पहले कि वह व्यक्ति तुम्हारे सम्मुख आए, वह उस व्यक्ति को जो वृक्ष पर बैठा है, दिखाई पड़ गया। जब वह व्यक्ति तुम्हारी आंखों से ओझल हो गया है तो उस व्यक्ति के लिए जो वृक्ष पर बैठा हुआ है वह ओझल नहीं हुआ है; किंतु कुछ समय के बाद वह व्यक्ति उसके लिए भी ओझल हो जाएगा। लेकिन कोई हेलीकाप्टर में हो; अब उसकी दृष्टि
SR No.034099
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages471
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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