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मिनट लगे। यदि समय न हो तुम यहां कैसे आ सकोगे, क्योंकि चलने के लिए समय की जरूरत है, चलना एक प्रक्रिया है, तुम्हें समय चाहिए। सभी प्रक्रियाओं को समय की जरूरत पड़ती है। अब नागार्जुन कहते हैं, 'यदि तुम कहते हो समय स्वयं में एक प्रक्रिया है तो इसको एक महा समय, एक अतिरिक्त समय की आवश्यकता होगी। और वह भी एक प्रक्रिया है, तो उसे भी एक अन्य समय, महा, महा समय...,'पुन: अनंत श्रृंखला खड़ी हो जाती है। फिर तुम इसका समाधान नहीं खोज सकते।
नहीं, समय, वास्तविक समय प्रक्रिया नहीं है, यह समकालिकता है। भविष्य, भूत, वर्तमान तीन भिन्न चीजें नहीं हैं, अत: उनको जोड़ने की कोई आवश्यकता नहीं है। यह शाश्वत अभी है, यह निरंतरता है। ऐसा नहीं है कि तुम्हारी बगल से समय गुजर रहा है। यह कहां जाएगा? इसे होकर गुजरने के लिए किसी और माध्यम की आवश्यकता पड़ेगी, और यह कहां जाएगा, और यह कहां से आएगा? यह वहां है; बल्कि यह यहां है। समय है। यह कोई प्रक्रिया नहीं है।
क्योंकि हम पूर्ण समय को देख नहीं सकते-हमारी आंखें संकुचित हैं, सीमित हैं। हम एक छोटी सी खिड़की से देख रहे हैं, इसीलिए ऐसा प्रतीत होता है कि तुम एक बार में एक ही क्षण को देख सकते हो। यह तुम्हारी सीमा है, समय का विभाजन नहीं है। क्योंकि तुम संपूर्ण समय को जैसा कि यह है नहीं देख सकते, क्योंकि अभी तक तुम समग्र नहीं हो, इसीलिए तुम समय का विभाजन भूत, वर्तमान, भविष्य में करते हो।
अब सूत्रः
'वर्तमान क्षण पर संयम साधने से क्षण विलीन हो जाता है, और आने वाला क्षण परम तत्व के बोध से जन्मे ज्ञान को लेकर आता है।
यदि तुम समय की प्रक्रिया पर, उस क्षण पर जो है, उस क्षण पर जो चला गया, उस क्षण पर जो आने वाला है, अपनी समाधि चेतना को ले आओ, यदि तुम अपनी समाधि ले आओ, अचानक परम तत्व का ज्ञान हो जाता है। क्योंकि जिस क्षण तुम समाधि के साथ देखते हो-वर्तमान, भविष्य और भूत का विभेद खो जाता है, वे विलय हो जाते हैं। उनमें विभाजन झूठा है। अचानक तुम शाश्वत के प्रति बोधपूर्ण हो जाते हो तिब समय समकालिकता है। कुछ भी जा नहीं रहा है, कुछ भी भीतर नहीं आ रहा है, सब कुछ है, मात्र है।
यह 'है-पन' परमात्मा के रूप में जाना जाता है; यही 'है-पन' ईश्वर की अवधारणा है।
'वर्तमान क्षण पर संयम साधने से क्षण विलीन हो जाता है, और आने वाला क्षण परम तत्व के बोध से जन्मे शान को लेकर आता है।'