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का मनोविश्लेषण कैसे किया जाए। क्योंकि तुमसे अधिक तुम्हारे स्वप्न के बारे में कोई नहीं जानता, क्योंकि तुम्हारे अतिरिक्त तुमसे और निकट अन्य कोई हो ही नहीं सकता।
एक सुंदर युवा महिला मनोचिकित्सक से मिलने गई। वह कुछ सेकंड उस महिला का मुख देखता रहा
और बोला : कृपया यहां मेरे पास आओ। तब अचानक उसको अपनी बांहों में लेकर मनोचिकित्सक ने उसका चुंबन लिया, फिर उसको अपने से अलग करके वह कहने लगा, मेरी समस्या का तो समाधान हो गया है, अब बताओ तुम्हारी क्या समस्या है?
उनकी अपनी समस्याएं हैं। उनकी अपनी मनोग्रस्तताएं हैं, मनःस्थितिया हैं।
पूरब में मनोविश्लेषण जैसा कभी कुछ नहीं रहा है। ऐसा नहीं है कि हमें मनोवैज्ञानिक संसार के बारे में कुछ पता नहीं है। हमें संसार के किसी भी समाज की तुलना में इसका अधिक गहराई से
बोध रहा है, लेकिन हमने सहायता के लिए एक नितांत भिन्न प्रकार का व्यक्ति निर्मित किया है, हम उस व्यक्ति को गुरु कहते हैं। गुरु और मनोविश्लेषक में क्या अंतर है? अंतर यह है कि मनोविश्लेषक के पास अभी भी समस्याएं हैं अनसुलझी, लेकिन गुरु के पास कोई समस्या नहीं है। जब तुम्हारे पास कोई समस्या न हो तभी तुम्हारी दृष्टि सुस्पष्ट होती है, तभी तुम स्वयं को दूसरे की स्थिति में रख सकते हो। जब तुम्हारे पास कोई समस्याएं कोई मनोग्रस्तताएं, कोई जटिलताएं कुछ भी नहीं होता, तुम मन से पूर्णत: निर्मल होते हो, मन तिरोहित हो चुका है, तुम अ-मन को उपलब्ध हो चुके हो, तभी, तभी तुम देख सकते हो। तब तुम निजी ढंग से व्याख्या नहीं करोगे। तुम्हारी व्याख्या सार्वभौमिक होगी, वह अस्तित्वगत होगी।
और तीसरा है वास्तविक, अस्तित्वगत समय। वास्तविक समय समय जरा भी नहीं है, क्योंकि वास्तविक समय शाश्वतता है। मैं तुम्हें इसे समझाता है।
क्रमागत समय स्वैच्छिक होता है। पश्चिम में जेनो ने इसे बहुत पहले हीर सिद्ध कर दिया है। पूरब में नागार्जुन ने इस बात को इतनी गहराई से सिद्ध किया है कि उसे कोई कभी खंडित नहीं कर पाया। वस्तुत: जेनो और नागार्जुन दोनों व्यक्तियों को कोई तर्क में हरा नहीं सका है। उन्हें कोई पराजित नहीं कर सकता, उनके तर्क अत्याधिक गहरे और परम हैं। जेनो और नागार्जुन कहते हैं कि समय की, क्रमागत समय की संपूर्ण अवधारणा असंगत है। उन दोनों व्यक्तियों के बारे में और उनके द्वारा किए गए क्रमागत समय के विश्लेषण के बारे में मैं तुम्हें कुछ बातें और बताता हूं।
उन्होंने समय के विश्लेषण की चरम ऊंचाइयां छू ली हैं। अभी तक कोई भी उनसे आगे निकलने में या उनके तर्कों में सुधार करने में सफल नहीं हो पाया है। उन्होंने पूछा 'समय क्या है?' तुमने बताया : 'यह एक प्रक्रिया है। एक क्षण अतीत में चला जाता है, मिट जाता है, एक और क्षण भविष्य से वर्तमान में आता है, समय के एक अंतराल के लिए वहां ठहरता हैं, फिर पुन: अतीत में चला जाता है,