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तारकं सर्वविषयं सर्वथाविषयक्रमं चेति विवेकजे ज्ञानम् ।। 5511
यथार्थ के बोध से उत्पन्न उच्चतम ज्ञान, सारी वस्तुओं और प्रक्रियाओं के भूत, भविष्य और वर्तमान से संबंधित समस्त विषयों की तत्क्षण पहचान के परे है, और यह वैश्विक प्रक्रिया का अतिक्रमण कर लेता है।
समय
समय क्या है? अब पतंजलि समयातीत प्रश्न, सनातन प्रश्न पूछते हैं और वे इस पर 'विभूतिपाद' '
के ठीक समापन पर आते हैं, क्योंकि समय को जानना महानतम चमत्कार है। यह जान लेना कि समय क्या है, जीवन क्या है को जान लेना है। यह जानना कि समय क्या है, यह जान लेना है कि सत्य क्या है। इसके पूर्व कि हम सूत्रों में प्रवेश करें, अनेक बातें समझना पड़ेगी; वे इन सूत्रों का परिचय बनेंगी।
सामान्यत: जिसे हम समय कहते हैं वह वास्तविक समय नहीं है। वह क्रमागत (क्रोनोलॉजिकल) समय है। अतः स्मरण रखो कि समय का विभाजन और वर्गीकरण तीन ढंगों से किया जा सकता है। एक है : 'क्रमागत' दूसरा है : 'मनोवैज्ञानिक' और तीसरा है. 'वास्तविक ।' क्रमागत समय वह है जिसे घड़ी बताती है। यह उपयोगी है, यह वास्तविक नहीं है। यह समाज द्वारा स्वीकार कर लिया गया एक भरोसा भर है। हम एक दिन को चौबीस घंटों में बांटने पर सहमत हैं। पृथ्वी अपनी धुरी पर एक वर्तुल पूरा करने में चौबीस घंटे लगाती है यह नितांत स्वैच्छिक है, हमने इसको चौबीस घंटों में विभाजित करने का निर्णय लिया गया हुआ है। फिर हमने प्रत्येक घंटे को साठ मिनटों में बांटने का निर्णय किया। इसी रूप में विभाजित करने की कोई आत्यंतिक आवश्यकता नहीं है। कोई और सभ्यता किसी और ढंग से बांट सकती है। हम एक घंटे को सौ मिनटों में बांट सकते हैं और कोई हमें रोकने नहीं जा रहा है। फिर प्रत्येक मिनट को हमने साठ सेकेंड में बांट रखा है। यह भी स्वैच्छिक है, मात्र उपयोगिता हेतु यह घड़ी वाला समय है। इसकी आवश्यकता है, वरना समाज बिखर
जाएगा।
सामान्य मानक जैसी कोई बात आवश्यक है-धन, चलने वाली मुद्रा की भांति । एक सौ रुपये का नोट या एक दस डालर का बिल, या और कुछ यह एक सामान्य विश्वास है जिसे समाज उपयोग करने के लिए सहमत हो गया है। लेकिन इसका अस्तित्व से कुछ भी लेना-देना नहीं है। यदि पृथ्वी से मनुष्य विलुप्त हो जाता है तो पाउंड स्टर्लिंग, डालर रुपये सभी तुरंत मिट जाएंगे। मनुष्य के बिना पृथ्वी तुरंत ही बिना धन की हो जाएगी चट्टानें होंगी, फूल अब भी खिलेंगे, वसंत आएगा और पक्षी गीत गाएंगे, और पतझड़ में पुरानी पत्तियां गिर जाएंगी, लेकिन वहां धन जरा भी न होगा। भले ही