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कहा, प्रश्न मत पूछो, कम से कम पराभौतिक प्रश्न तो पूछो ही मत, क्योंकि वे मूढ़ताएं हैं। यथार्थ के साथ रहो।
जीवन आत्यंतिक रूप इतना सुंदर है, इसे अभी क्यों नहीं जी रही हो? रोना, यह जीवन की एक मुद्रा है, हंसना भी जीवन की एक मुद्रा है। कभी कभी तुम दुखी होती हो। यह जीवन की एक मुद्रा, एक भावदशा है। सुंदर है। कभी कभी तुम आनंदित हो और हर्ष से प्रफुल्लित हो रही हो, और नृत्य कर रही हो। यह भी अच्छा और सुंदर है जो कुछ भी घटता है, इसे स्वीकार करो, इसका स्वागत करो, और इसके साथ रहो और तुम देखोगी कि धीरे धीरे तुमने प्रश्न पूछने की और जीवन से समस्याएं निर्मित करने की आदत त्याग दी है।
और जब तुम समस्याएं निर्मित नहीं करती, जीवन अपने सारे रहस्य खोल देता है। यह उस व्यक्ति के सम्मुख कभी नहीं खुलता जो प्रश्न पूछता चला जाता है जीवन अपने को अनावृत करने को तैयार है यदि तुम इसे समस्या न बनाओ। यदि तुम समस्या बनाती हो तो तुम्हारा यह निर्माण ही तुम्हारी आंखें बंद कर देता है। तुम जीवन के प्रति आक्रामक हो जाती हो ।
वैज्ञानिक प्रयास और धार्मिक प्रयास के बीच यही भेद है। वैज्ञानिक एक आक्रामक व्यक्ति है, जो सदा जीवन से सत्य छीनने का प्रयास करता है, जीवन को सत्य प्रदान करने के लिए बाध्य करता हैकरीब-करीब बंदूक की नोक पर हिंसक ढंग से धार्मिक व्यक्ति जीवन के समक्ष बंदूक के साथ खड़ा होकर प्रश्न नहीं पूछा करता। धार्मिक व्यक्ति जीवन के साथ बस विश्रांत हो जाता है, बहता है इसके साथ, और जीवन धार्मिक व्यक्ति के लिए इतने अधिक रहस्य उदघाटित कर देता है, जो वह वैज्ञानिक के सामने कभी न करता । वैज्ञानिक तो सदा मेज से नीचे गिरने वाले जूठन के टुकड़ों को एकत्रित करता रहता है। वैज्ञानिक को कभी अतिथि की भांति निमंत्रण नहीं मिलने वाला है जो जीवन को प्रेम करते हैं, इसका स्वागत करते हैं, इसे किसी प्रश्न के साथ नहीं बल्कि श्रद्धापूर्वक, हर्ष के साथ स्वीकार करते हैं, वे ही अतिथि बन जाते हैं।
प्रश्न: इन रोगों का बिलकुल सही उपचार कैसे हो?
पहला कृपणता ।
दूसरा. बकवास करना, पूर्णत्व की चिंता करते रहना ।
तीसरा अभिनेता व्यक्तित्व, अर्थात सदैव ऐसा व्यवहार करना जैसे कि यह कोई नाटक हो ।