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________________ बैठे हु थे, उन्होंने कहा : यह बहुत कठोरता है, ऐसा क्यों? आपने हमसे कभी ऐसा नहीं कहा? आपने हमसे कभी गी कहा- नग्न हो जाओ और बाजार जाओ और अपने सिर पर आपके जूते को मारो, आप सुलान इब्राहीम के प्रति इतने कठोर क्यों हैं? सदगुरु ने कहा : क्योंकि उसका अहंकार तुम्हारे अहंकार से बड़ा है। वह एक सुल्तान है, और मुझे उसे गिराना है, वरना आगे का कार्य संभव न हो सकेगा। लेकिन इब्राहीम ने कोई सवाल न पूछा, उसने बस वस्त्रो का त्याग कर दिया। यह उसके लिए अत्याधिक कठिन रहा होगा उसी राजधानी में जहां वह सदैव सुल्तान की तरह रहा था, उसको हमेशा से करीब-करीब अतिमानव की भांति समझा गया था, गलियों से गुजरना, जिसमें वह कभी गया भी न था, और उस पर भी नग्न होकर अपने सर पर जूता मारते हुए। लेकिन वह गया, शहर में घूमा। उसकी हंसी उड़ाई गई, बच्चों ने उसके ऊपर पत्थर फेंकना शुरू कर उसका उपहास और हंसी उड़ाने लगी, जैसे कि वह पागल हो गया हो घूमा और वापस लौट आया। दिए - स्व भीड़, एक बड़ी भीड़ लेकिन वह नगर में चारों ओर सदगुरु ने कहा : तुम्हें स्वीकार किया जाता है, अब सब कुछ सम्भव है, तुम खुल गए हो। तो इसका क्या कारण है? यदि तुम समझो, तो तुम समझ जाओगे कि वह उसके अहंकार को तोड्ने का एक उपाय है। जब अहंकार चला जाता है, श्रद्धा आ जाती है। संन्यास तो बस एक उपाय है, एक ढंग है, यह देखने का, क्या तुम मेरे साथ आ सकते हो? मैंने तुम्हारे लिए इसे करीब-करीब नामुमकिन बना दिया है- मेरे चारों ओर उड़ने वाली अफवाहें। मैं उन्हें सहारा देता रहता हूं और मैं तुमसे भी कहूंगा कि जितनी अफवाहें निर्मित कर सकते हो तुम भी करो। सत्य की चिंता मत करो, अफवाहें उड़ाओ। जो लोग इन अफवाहों के बावजूद मुझसे संपर्क करने में समर्थ हो पाएंगे, वे ही उचित, साहसी, हिम्मतवर लोग होंगे। उनके लिए बहुत कुछ संभव है। इसलिए पहली बात यहां पर उपद्रव बहुत जान कर निर्मित किया गया है। इसलिए ऐसा मत सोचो कि यह किसी प्रकार की समस्या है नहीं यह एक उपाय है। और हर किसी के पास जाकर उपद्रव के बारे में मत पूछो, वरना वह सोचेगा कि तुम पागल हो रहे हो। मनोचिकित्सक के पास जाकर मत पूछो क्योंकि सारी मनोचिकित्सा, मनोविश्लेषण लोगों की एक बहुत ही गलत ढंग से सहायता करने के प्रयास में संलग्न हैं। वे तुम्हें एक समायोजित व्यक्ति बनाने की कोशिश करते हैं। यहां मेरा पूरा प्रयास तुम्हारे सभी समायोजन तोड्ने के लिए है। जिसे मैं सृजनात्मक उपद्रव कहता हूं इसे वे कुसमायोजन कहेंगे और वे चाहते हैं कि हर कोई सामान्य हो जाए, बिना कभी यह सोचे कि कौन सामान्य है। हु
SR No.034099
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages471
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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